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चुनावी चटखारे,जिनके सीने पर सांप लोटना हो लोटते रहें


कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार

                    रेवड़ी बांट कर मतदाताओं की आदत बिगाड़ने वाले दलों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती का असर तो धीरे धीरे नजर आएगा तब तक तो डमरु बजाने-रिझाने का सब को हक है ही। इसके बाद भी मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश के टैक्स पेयर वर्ग को तारीफ करना ही चाहिए कि वो सच्चे मन से स्वीकारने की हिम्मत तो रखते हैं। उनकी इस साफगोई की बाद में चाहे जो प्रतिक्रिया रही हो लेकिन इतनी सहजता से सच स्वीकारने की हिम्मत किसी अन्य नेता में है क्या? पिछले दिनों मुख्यमंत्री जबलपुर में थे। करीब 40 चिकित्सकों के समूह से सीधे संवाद में चिकित्सकों की तारीफ करते हुए यह बोल गए कि सरकार की आय बढ़ाने में आप सब का सहयोग है। आप से मिला टैक्स ही तो गरीबों-जरूरतमंदों में बांट रहा हूं। कमलनाथ ने सरकार में आने पर नारी सम्मान में 1500 रु महीना देने, 100 यूनिट तक माफ और 200 यूनिट पर बिजली बिल हॉफ करने जैसे आश्वासन दिए हैं। इसके विपरीत शिवराज सरकार ने तो बीते एक दो साल में धड़ाधड़ 11 योजनाओं में लाभ देना शुरु भी कर दिया है। 
                    इंदौर में प्रदेश की लाड़ली बहनों को दूसरी किश्त जारी करते हुए उन्होंने और ऊंची छलांग लगा दी है।अब इन बहनों के लाड़ले भाई का मन कर रहा है कि आप को 10 हजार रु दे दूं।इस योजना में चुनाव घोषित होने तक तो 3 हजार रु तक मिलने ही लग जाएंगे। बहनें भी जानती हैं कि शिवराज जो कहते हैं कर के भी दिखाते हैं। उनके मन में आए इस भाव से लाड़ली बहनों के मन में लड्डू तो फूटने ही लग गए हैं।प्रदेश का जो बड़ा वर्ग ईमानदारी से सारे टैक्स भर रहा है उसकी छाती पर तो दोनों दलों द्वारा की जाने वाली नित नई घोषणा से सांप लोट रहे हैं। 
                   प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक मत के प्रवर्तक हुए हैं चार्वाक, इन्हें बृहस्पति का शिष्य माना जाता है। चार्वाक के अनुसार ‘यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत।अर्थात जब तक जीवन है सुखों का उपभोग कर लेना चाहिए।चार्वाक के कर्ज लेकर घी पीने के सिद्धांत पर रंगीन सपने दिखाने वाली चाहे दिग्विजय सरकार रही हो या वर्तमान सरकार।किसी सरकार को राज्य की ‘प्रगति’ के नाम पर कर्ज लेने में हिचक महसूस नहीं होती। प्रगति वाली योजनाओं पर काम भी होता है लेकिन कुछ सालों में आ जाने वाले चुनावों से सरकार का ध्यान काम से भटक कर मतदाताओं को रेवड़ी बांट कर रिझाने में लग जाता है। बात चाहे केंद्र की हो या राज्य की, आज के हालात में या तो सर्वाधिक सम्पन्न वर्ग खुश है या निम्न आय वर्ग, जितना देना नहीं है उससे अधिक तो पाना ही पाना है। मुसीबत में है वो मध्यम वर्ग जो टैक्स तो सारे चुका रहा है और रेवड़ियों के नाम पर पिसा जा रहा है।उसे कोई फायदा मिले ना मिले केंद्र और राज्य के सारे टैक्स तो चुकाना ही है, यही वजह है कि जब भी सरकार लोगों को मुफ्त में सुविधा देने की घोषणा करती है सांप  इस वर्ग की छाती पर लोटने लगते हैं क्योंकि इन्हीं टैक्स पेयर्स की ईमानदारी से ही टैक्स के दायरे से बाहर वाले वर्ग तक मुफ्त की सुविधाओं वाली नदी खुद द्वार-द्वार पहुंच जाती है।
महाकौशल पर भाजपा का फोकस 
तो कांग्रेस को चिंता है विंध्य की

इस बार भाजपा का महाकौशल अंचल पर और कांग्रेस का विंध्य क्षेत्र पर अधिक फोकस है और इसकी वजह है 2018 के चुनाव में महाकौशल क्षेत्र की 38 में से भाजपा को 11 सीटें ही मिल पाना, कांग्रेस 26 और एक पर निर्दलीय की जीत हुई थी। यही नहीं जबलपुर में 22 साल और छिंदवाड़ा में 18 साल बाद महापौर का चुनाव भी भाजपा हार गई थी। कटनी में तो निर्दलीय प्रत्याशी प्रीति सूरी महापौर बन गई थी।बाद में भाजपा में शामिल हो गईं थीं। यहां से तो फिर भी दो विधायकों को मंत्री बना दिया लेकिन महाकौशल में किसी को नहीं बनाया। विंध्य में सात जिलों की 30 में से 24 भाजपा और 6 कांग्रेस जीती थी। 
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विदेशी मामलों में संघ के थिंक टैंक और शैक्षणिक जगत में संघ के विचारों के मुखर समर्थक माने जाने वाले (स्व) डॉ ओम नागपाल की बेटी डॉ दिव्या गुप्ता का पार्टी में कद बढ़ता जा रहा है। समाजसेवा में सक्रियता के साथ पहले वो विदेशी मसलों पर पार्टी की प्रवक्ता के रूप में प्रभावी भूमिका मिभा चुकीं डॉ दिव्या केद्र सरकार के बाल आयोग में सदस्य मनोनीत हुए बाद से देश भर में बच्चों की बेहतरी के लिए राज्यों के दौरे करने के साथ केंद्र को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट तैयार कर रही हैं। डॉ दिव्या गुप्ता की जगह इंदौर के ही रोहित गंगवाल को विदेश संपर्क विभाग का संयोजक बना दिया है। 
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विधानसभा चुनाव में चेहरा तो 
नरेंद्र मोदी का ही रहेगा
आरएसएस के निर्देशों और भाजपा नेतृत्व द्वारा पार्टी वाले राज्यों के कामों की समीक्षा के बाद फैसला लिया है कि किसी राज्य में सीएम फेस पर चुनाव नहीं लड़ा जाए।सब जगह प्रधानमंत्री का चेहरा और केंद्र सरकार की उपलब्धियों और सरकारों के काम से राज्यों में हुई तरक्की पर ही फोकस रहेगा।यह फैसला इस लिहाज से भी बेहतर है कि नेतृत्व का विवाद और असंतोष से की स्थिति नहीं बन पाएगी। भाजपा शासित मप्र और राजस्थान को ही देख लें । मप्र में भाजपा पुरानी, नई भाजपा में बंटी हुई है तो राजस्थान में वसुंधरा राजे को अपनी शर्तों का अंकुश लगाने पर केंद्रीय नेतृत्व असहाय नजर आता है, यहां भी पार्टी गुटों में बंटी हुई है। ऐसे तमाम कारणों के चलते किसी नेता को सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करना ही बेहतर माना जा रहा है।
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आप तो कवि हो गए महाराज…! 
कांग्रेस में श्रीमंत वाले ठसके से मुक्त नहीं हो पाए ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आए बाद से खुद को आम आदमी दिखाने में लगे हैं।ग्वालियर क्षेत्र में जब होते हैं तो बच्चों के साथ सेल्फी, विवाह समारोह, सभा आदि में भीड़ के बीच जाकर उनकी हिचक को विश्वास में बदलने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही उनके खिलाफ ‘माफ करो महाराज’ अभियान चलाया था पर अब तो ‘पधारो महाराज’ वाला प्रेम है। हां अब कांग्रेस उन पर ‘आप तो कवि हो गए महाराज’ का तंज कस सकती है। 
दिग्विजयय सिंह के क्षेत्र राघोगढ़ में बीते दिनों शिवराज और सिंधिया एक मंच पर थे।सांसद सिंह और उनके विधायक बेटे जयवर्द्धन पर सिंधिया ने तुकबंदी से हमला बोला।मंच से उन्होंने कविता सुनाई- 
एक थी बाप-बेटे की जोड़ी निराली
कर दी उन्होंने मप्र की झोली खाली
रावण जैसा अहंकार रहता सिर पर सवार 
न उठे अपनी गद्दी से एक इंच भी 
नाम है उनका बंटाढार। 
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