*दूर की दृष्टि जितनी साफ, पास की उतनी ही धुंधली *
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल आए प्रधानमंत्री मोदी बूथ कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में जीत के मंत्र देते हुए कांग्रेस सहित अन्य दलों में जड़ जमा चुके परिवारवाद पर भी खूब बोले थे।कार्यकर्ताओं सहित लाइव सुनने वालों को भी मोदी की यह साफगोई पसंद आई है।हालांकि उनके इस हमले से प्रदेश भाजपा के उन कई नेताओं की नींद भी हराम हो गई है जो पार्टी में वंश परंपरा के प्रामाणिक दस्तावेदज माने जाते हैं। इंदौर की बात करें तो लक्ष्मण सिंह गौड़ के असामयिक निधन के बाद पत्नी मालिनी गौड़ विधायक के बाद महापौर भी हो गईं।अब उन्हें टिकट नहीं मिले तो विकल्प के रूप में पुत्र का का नाम आगे बढ़ाने की सोच पर काम चल रहा है।भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश के बल्ला कांड को लेकर पीएमओ का रुख भले ही ठीक ना रहा हो लेकिन बेटे को टिकट की अपनी जिद को जीत में बदलने के बाद से से वे भी पार्टी में परिवारवाद की मजबूत कड़ी बन गए हैं।
राजधानी की बात करें तो पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की पुत्रवधु कृष्णा विधायक और महापौर भी रही हैं।प्रदेश में सीएम रहे तीन नेताओं में सुंदरलाल के भतीजे सुरेंद्र पटवा, वीरेंद्र कुमार सखलेचा के पुत्र-मंत्री ओम प्रकाश सखलेचा, और उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी से लेकर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के विधायक भाई जालम सिंह, देवास के पूर्व विधायक स्व तुकोजीराव की पत्नी गायत्री राजे, विधानसभा अध्यक्ष रहे ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र-विधायक अशोक रोहाणी, मंत्री विजय शाह के भाई-विधायक संजय शाह, लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर रहे डा लक्ष्मीनारायण पांडे के पुत्र-विधायक राजेंद्र पांडे, पूर्व सांसद कैलाश सारंग के पुत्र-मंत्री विश्वास सारंग, भाजपा की संस्थापकों में से एक विजयाराजे की बेटी-मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ये सब भी पार्टी में परिवारवाद की मजबूत होती जड़ में सहायक बने हुए हैं।बड़े नेता लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन का मान रख लें और उनके पुत्र को राऊ से प्रत्याशी बना दे तो इस अमर बेल में एक कोपल और फूट जाएगी।
प्रधानमंत्री ने जिस तरह विपक्ष को परिवारवाद के मुद्दे पर घेरा है तो यह संभव नहीं कि मोशाजी को मप्र में फलते-फूलते परिवारवाद की जानकारी नहीं हो।मोदी के भाषण के महीन अर्थ समझने वाले पार्टी के कई नेता मान रहे हैं कि पांचवी बार मप्र में भाजपा की सरकार के लिए टिकट वितरण में केंद्रीय नेतृत्व ने परिवारवाद के आरोप से बचने का मन बना लिया है।
*नायक का नया अंदाज *
पहले जिलों के अधिकारी खौफ में रहते थे कि आमसभा करने आए मुख्यमंत्री पता नहीं किस अधिकारी को निलंबित कर दें या जेल भेजने के निर्देश जारी कर दें।पहले ‘नायक’ फिल्म के अनिल कपूर जैसी पहचान बना चुके मुख्यमंत्री अब नये अंदाज में है।भोपाल से ही किसी भी जिले के किसी भी शहर में फोन लगाते हैं। उधर से हैलो के जवाब में इधर से जब कहा जाता है मैं शिवराज सिंह बोल रहा हूं तो सुनने वाला एक पल तो सोचता है कहीं फर्जी कॉल तो नहीं है। फिर सीएम जब उनकी बात सुन कर बाल की खाल निकालने लगते हैं तो सुनने वाले को भरोसा हो जाता है कि ये असली वाले भैया, मामाजी हैं।भिंड में लाड़ली बहना ने फोन पर जब बताया कि नाला बंद होने से सफाई नहीं हो रही है तो कुछ देर बाद ही नगर निगम का अमला पहुंच गया।चुनावी साल में उनके ये सारे अंदाज चर्चा में भी हैं।
*सता रहा है एक हजार का अंतर *
नोटबंदी के इतने साल हो गए हैं कि एक हजार का नोट तो आमजन भूल चुके हैं लेकिन भाजपा-कांग्रेस को ये एक हजार सताए जा रहा है।प्रदेश के सात विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां एक हजार वोट के अंतर से पिछली बार हार जीत हुई है। भाजपा 7 सीटें ग्वालियर दक्षिण, सुवासरा, जबलपुर उत्तर, राजनगर, दमोह, ब्यावरा, राजपुर एक हजार से कम वोटों से हार गई थी।इसी तरह कांग्रेस जावरा, बीना, कोलारस ये तीन सीटें एक हजार से कम वोटो से हार गई थी। कांग्रेस को तब 114 सीटें ही मिली थीं, ये तीन सीटें और मिल जाती तो बसपा, सपा निर्दलीय की मनुहार नहीं करना पड़ती।अब इन सात सीटों पर अपने पक्ष में मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए दोनों दल सजग हैं।
विजय के लिए ना बने अग्निपथ -
ग्वालियर-चंबल संभाग में तोमर सिंधिया समर्थकों में बढ़ती खाई से अब शायद सदभाव की महक उठने लग जाए। अब विजय दुबे को चंबल संभाग का संगठन प्रभारी बनाया गया है।है।संघ के प्रचारक के साथ ही वे पहले क्षेत्र के संगठन मंत्री और तोमर के चुनाव संचालक भी रहे हैं।इस विजय पथ से तोमर समर्थकों से अधिक यह जरूरी है कि उन्हें सिंधिया समर्थक उनमें पंच परमेश्वर देखें।संगठन ने उन्हें यदि जिम्मेदारी सौंपी हैं तो विजय दुबे पर भरोसा होगा कि नई भाजपा-पुरानी भाजपा की खाई को पाट देंगे।
*ग्राउंड रिपोर्ट भाजपा आलाकमान को जाएगी *
मालवा और निमाड़ क्षेत्र ने पिछले चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने में मदद की थी। इस बार रायता न फैल जाए इसकी चिंता भाजपा को इसलिए भी है कि नई और पुरानी भाजपा के नाम से दो खेमे बन चुके हैं। मप्र के संगठन, प्रभारी तो दूरियां मिटाने के प्रयास कर ही रहे हैं। अब मालवा और निमाड़ के लिए केंद्रीय संगठन भी अपने विश्वस्तों की एक एक टीम भेज रहा है।टीम के सदस्य संगठन की मजबूती के साथ कार्यकर्ताओं का ब्रेन वॉश भी करेंगे और प्रगति रिपोर्ट सीधे केंद्रीय नेताओं को भेजते रहेंगे।
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