शिप्रा नदी में डूबने से मौतों पर लगेगी लगाम*
*संदीप कुलश्रेष्ठ*
पिछले जून माह में ही शिप्रा नदी में श्रद्धालुओं की डूबने से एक के बाद एक 6 मौतें हो गई थी। सोशल मीडिया, प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इसकी काफी आलोचनाएँ भी हुई थी। इसमें जिला प्रशासन की लापरवाही और बदइंतजामों की काफी शिकायतें भी की गई। यह खुशी की बात है कि जिला प्रशासन अब चेत गया है। जिला प्रशासन ने हाल ही में शिप्रा नदी में 1500 मीटर क्षेत्र के घाटों को स्थायी रैलिंग से सुरक्षित करने की तैयारी शुरू कर दी है। *60 लाख रूपए के टेंडर जारी* - शिप्रा नदी के प्रमुख घाटों रामघाट, दत्त अखाड़ा घाट और सुनहरी घाट से नृसिंह घाट तक स्टील के मजबूत पाईप की स्थायी रेलिंग लगाई जायेगी। इस कार्य के लिए कलेक्टर श्री कुमार पुरूषोत्तम द्वारा स्मार्ट सिटी से 60 लाख रूपए की राशि के टेंडर भी जारी करा दिए गए हैं।
*कलेक्टर ने देखी थी वास्तविक स्थिति* -
पिछले महीने जून में शिप्रा नदी में लगातार 6 लोगों की डूबने से मौत के बाद कलेक्टर ने मौका मुआयना किया था। निजी तैराकों को नदी में उतारकर पानी की गहराई नापी थी। इसके साथ ही घाटों पर फिसलन आदि का भी पता किया था। कलेक्टर के भ्रमण के बाद गहरे पानी वाले खतरनाक घाट सिद्ध आश्रम के घाट को सबसे पहले अस्थायी रेलिंग से प्रतिबंधित कर दिया गया था। अब अन्य घाटों में स्थायी रेलिंग की योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है। *गहरे पानी में डूब जाते थे लोग* - शिप्रा नदी में अनेक घाट ऐसे हैं, जिसका पानी काफी गहरा है। कोई दिशासूचक नहीं होने के कारण और घाट पर रेलिंग नहीं होने के कारण श्रद्धालु स्नान करने नदी में जाते थे और घाटों में चिकनाई की वजह से फिसलकर गहरे पानी में चले जाते थे और उनकी मौत हो जाती थी। इसलिए गहरे पानी वाले घाटों में सुरक्षा के उपाय करना जरूरी था। गहराई वाले घाटों पर गहराई की सूचना के बोर्ड भी लगाए जाना चाहिए, ताकि श्रद्धालु सचेत हो सके।
*घाटों की फिसलन को समाप्त किया जाए* -
शिप्रा नदी में लगभग सभी घाटों में चिकनाई के कारण अत्यधिक फिसलन है। इसी कारण श्रद्धालु नदी में उतरते है और रेलिंग नहीं होने के कारण फिसलकर गहरे पानी में चले जाते है। इसलिए जरूरी यह भी है कि जिला प्रशासन सभी घाटों की फिसलन और चिकनाई को वर्तमान में तो समाप्त तो करें ही, भविष्य में भी नियमित रूप से घाटों की सफाई का काम सुव्यवस्थित रूप से चलता रहे, इसकी स्थायी व्यवस्था करें।
*45 दिन में काम होगा पूरा* -
विभिन्न घाटों के 1500 मीटर का क्षेत्र में स्थायी रेलिंग लगाने के लिए सभी घाटों का चयन कर लिया गया है। इन रेलिंग की ऊँचाई 20 मीटर रहेगी। ताकि रेलिंग के बाहर कोई जा न सके। टेंडर में यह शर्त लगाई गई है कि उक्त कार्य 45 दिन में पूरा करके देना होगा।
*अन्य घाटों पर भी हो ऐसी व्यवस्था* -
जिला प्रशासन देर से चेता पर उसने स्थायी कार्य करने की शुरूआत की। इसलिए उसकी सराहना भी की जानी चाहिए। शुरूआत में सबसे खतरनाक घाटों पर यह व्यवस्था की है, यह ठीक भी है, किन्तु यह ध्यान रखा जाना चहिए कि शेष बचे घाटों पर भी श्रद्धालु स्नान करते है। विशेष तीज त्यौहारों और पर्वों पर तो श्रद्धालु शिप्रा नदी में जहाँ जगह मिलें वहीं स्नान कर लेते हैं। इसलिए भी जरूरी यह है कि शिप्रा के सभी घाटों में भी ऐसी ही स्थायी रेलिंग लगाने का काम हाथ में लिया जाए। इससे होगा यह कि श्रद्धालुओं के लिए शिप्रा नदी में स्नान करने के लिए सभी घाट सुरक्षित हो सकेंगे।
*पूर्व में सिंहस्थ में लगी रेलिंग क्यों हटाई ?* -
कलेक्टर को चाहिए कि वह इस बात की भी जाँच कराएँ कि पूर्व के दो सिंहस्थों वर्ष 2004 और 2016 के सिंहस्थ में शिप्रा के सभी घाटों पर स्थायी रेलिंग लगाई गई थी , उन रेलिंगों को सिंहस्थ के बाद किसके कहने पर हटाई गई ? पिछले सिंहस्थों में किसी भी श्रद्धालुओं की शिप्रा नदी में डूबने से मौत नहीं हुई थी। 2004 के सिंहस्थ के बाद रेलिंग किसके कहने पर हटाई गई ? इसी प्रकार 2016 के सिंहस्थ के बाद भी रेलिंग किसके निर्देश पर हटाई गई ? उक्त दोनों सिंहस्थों में जल संसाधन विभाग द्वारा रेलिंग लगाई गई थी। उस समय के जल संसाधन विभाग के सेवानिवृत्त इंजीनियरों का यह कहना है कि 2016 में सिंहस्थ के बाद जिला प्रशासन के निर्देश पर रेलिंग हटाई गई थी। सभी रेलिंग हटाकर जलसंसाधन विभाग के गोडाउन में रख दी गई थी। आज भी वे रेलिंग वहीं पडे़-पड़े सड़ रही है। तब उस समय विभाग के अधिकारियों ने रेलिंग नहीं हटाने के लिए तत्कालीन जिला प्रशासन के अधिकारियों से निवेदन किया था, किन्तु उनके निवेदन को अनदेखा और अनसुना कर दिया था। यदि यह सच है तो यह जाँच का विषय है। कलेक्टर को इसकी भी निष्पक्ष जाँच जरूर करानी चाहिए।
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