चुनावी चटखारे, बार-बार याद दिलाने की मजबूरी
कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार
वाकई इंदौर मुख्यमंत्री के ही सपनों का शहर है। यहां चाहे अपराध बढ़ें, पुलिस की ढिलाई को लेकर लोग परेशान रहें, पीड़ितों की रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करें, चौराहे-चौराहे चालानी कार्रवाई के आतंक से वाहन चालक परेशान हों, पब में देर रात तक शराब परोसी जा रही हो, नशे का फलता फूलता कारोबार हो या वसूली को लेकर व्यापारी त्रस्त हों मुख्यमंत्री जब वीडियो कांफ्रेसिंग कर अधिकारियों की खिंचाई करते हैं तब उनकी तंद्रा टूटती और याददाश्त लौटती है कि अरे…यह सब तो हमें करना है। महानगर होते शहर की चिंता से परेशान मुख्यमंत्री ने जब इंदौर से पुलिस कमिश्नरी की शुरुआत की थी तो प्रदेश के बाकी शहरों को भी लगा था बस अब तो यहां राम राज्य आ ही जाएगा। ऐसा हो ही जाता तो हर दो-चार माह में सीएम को यह याद नहीं दिलाना पड़ता कि अपराधियों में पुलिस का खौफ होना चाहिए। बीते 18 वर्षों में सैकड़ों बार ऐसी हिदायतों का पुलिस प्रशासन पर असर हुआ होता तो उन्हें फिर से यही बातें दोहराना नहीं पड़ती। वैसे तो जिले के प्रभारी-गृहमंत्री भी उदघाटन-सम्मेलनों की अध्यक्षता के लिए आते रहते हैं लेकिन बात जब सीएम के सपनों के शहर की हो तो वो भी फटे में पांव क्यों डालें, वैसे भी उनकी सुनेगा कौन?
दमोह में भी सांसद पुलिस से दुखी
पूर्व मंत्री जयंत मलैया के एक समर्थक राशन दुकानदार द्वारा की गई आत्महत्या के मामले में पुलिस द्वारा ‘जल्दबाजी में की गई कार्रवाई’ से नाराज सांसद-केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने प्रकरण में निष्पक्ष जांच ना होने तक दमोह पुलिस की सुरक्षा नहीं लेने से इंकार कर दिया है।मामला जब दो भाजपा नेताओं के आसपास घूम रहा हो तो सेंडविच बनी दमोह पुलिस की मुसीबत तो होना ही है। अब गृहमंत्री ने मामले की जांच सीआयडी को सौंप कर डेमेज कंट्रोल करने की कोशिश जरूर की है लेकिन दूध तो फट ही गया है।
बहनजी की नजर 82 सीटों पर
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बार मप्र की 230 सीटों की अपेक्षा 82 सीटों पर ही फोकस करने का मन बनाया है। इनमें से अनुसूचित जाति वाली 35 और अनुसूचित जन
जाति की 47 सीटें हैं।शायद ही कोई ऐसा चुनाव रहा हो जिसमें बसपा से चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों ने दौड़ में पिछड़ने पर यह आरोप ना लगाया हो कि बसपा में टिकट बिकते हैं।बहन जी को ऐसे आरोपों से फर्क भी नहीं पड़ता।उन्होंने मप्र में नए सिरे से बसपा को मजबूत करने के लिए जिला स्तर पर नये पदाधिकारियों की नियुक्ति भी शुरु कर दी है।
दर्द मिला चार नंबर से, राहत मिली दो नंबर से
क्षेत्र क्रमांक चार से कभी कैलाश विजयवर्गीय भी चुनाव जीत चुके हैं।इस क्षेत्र को अयोध्या के नाम से विधायक रहे लक्ष्मण सिंह गौड़ ने पहचान दिलाई। बाद में विधायक मालिनी गौड़ यहां से जीतीं जाने क्या हुआ कि वो महापौर बनीं तब से दो और चार में महाभारत जैसे हालात बन गए।भाजयुमो अध्यक्ष सौगात मिश्रा के साथ मारपीट मामले में गौड़ परिवार के शुभेंदु का नाम सामने आया था, संगठन ने उन पर कार्रवाई भी कर दी। अब सौगात मिश्रा ने आपात्तकाल के विरोध में वाहन रैली निकाली तो समर्थन देने भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय न सिर्फ रैली में शामिल हुए बल्कि उसी स्कूटर पर बैठे जिसे सौगात चला रहे थे।अब जब मिश्रा के कंधे पर विजयवर्गीय हाथ रख दें तो भाजपा में चर्चा होगी ही।
टाली भी जा सकती थी यात्रा
महू में हिंदू स्वाभिमान गौरव यात्रा निकल तो गई, लेकिन भाजपा में भी हलचल है कि यह यात्रा गौरवपूर्ण क्यों नहीं दिखी।इसके कारण तलाशने वाले मानते हैं कि ईद से ठीक पहले यह यात्रा निकालना इस लिहाज से भी उचित नहीं था क्योंकि महू प्रदेश के अति संवेदनशील शहरों की सूची में है।इस तरह की यात्राओं के एक्सपर्ट समझे जाने वाले डॉ निशांत खरे की समीक्षा में और भी कारण सामने आ सकते हैं कि यात्रा इतनी फीकी-फीकी क्यों नजर आई।
मंदिरों का सौंदर्यीकरण याद दिलाएंगे
मप्र में भाजपा सरकार के विरुद्ध जिन भी कारणों से सरकार विरोधी हवा फैल रही है उसे भापंकर संघ ने भी अपने आनुषांगिक संगठनों को मैदान संभालने का संकेत दे दिया है।बात जब संघ की हो तो वह धर्म, संस्कृति, हिंदू हित की अनदेखी कैसे कर सकता है।महाकाल लोक ओंकारेश्वर एकात्मधाम, सलकनपुर, मैहर, पीतांबरा पीठ जैसे मंदिरों के विकास की भव्य योजना, अहिल्या लोक जैसे मुद्दों के साथ ही धारा 370 की समाप्ति, लव जिहाद, तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण, ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा मंदिर का मुद्दा-इन सब योजनाओं की गूंज इतनी तेज होगी जो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव तक भी सुनाई देंगी।
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