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चुनावी चटखारे,प्रधानमंत्री कांग्रेस को 8 रु 65 पैसे का मंत्र दे गए ….!


कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार

                          प्रधानमंत्री मोदी आए तो थे मिशन भाजपा में मेरा बूथ सबसे मजबूत अभियान में कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देने के लिए लेकिन कांग्रेस को भी शिवराज सरकार के खिलाफ 8 रु 65 पैसे का एक बड़ा चुनावी मुद्दा दे गए। ढाई वर्ष में उनका यह छठा और हाल के तीन माह में तीसरा दौरा था। अपनी नौ साल की सरकार की उपलब्धियां गिनाने के जोश में प्रधानमंत्री ने भोपाल की सभा में यह भी गिनाया कि भारत में जहां-जहां भी भाजपा की सरकारें हैं वहां पर पेट्रोल की कीमतें ₹100 प्रति लीटर  से कम है।किसी नेता की यह हिम्मत हुई नहीं कि मोदी जी के कान में ही बता दे कि इस मंच पर तो प्रति लीटर का भाव मत बोलिये, प्रदेश में पेट्रोल 108.65 रुपए लीटर में मिल रहा है।प्रधानमंत्री अपनी यात्रा निपटा कर दिल्ली भी नहीं पहुंचे कि उससे पहले कांग्रेस ने ये मुद्दा लपक लिया है।
                            प्रदेश कांग्रेस मीडिया उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने प्रधानमंत्री मोदी की भोपाल आमसभा का हवाला देकर मुख्यमंत्री से पूछ लिया है कि मध्यप्रदेश में पेट्रोल पर प्रति लीटर  ₹8.65 पैसे अतिरिक्त क्यों वसूले जा रहे हैं ? गुप्ता ने मांग कर डाली है कि प्रदेश के करोड़ों उपभोक्ताओं के ₹8.65 पैसे जो अतिरिक्त वसूले गए हैं वह वापस लौटाए जाने चाहिए। साथ ही प्रदेश सरकार पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल पर ₹ 8.65 पैसे की अतिरिक्त वसूली बंद कराए। 
महू में जोर पकड़ती स्थानीय की मांग
                           दबंग नेत्री-पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर के लिए आम भाजपा कार्यकर्ता भी कहता है चाहे जहां से लड़ा दो जीत कर ही आएंगी, यह बात सही भी है।यही दावा करने वाले धीरे से यह कहने से नहीं चूकते कि दूसरी बार उसी क्षेत्र से नहीं लड़ना चाहती क्योंकि लोग जाने क्यों नाराज हो जाते हैं।वैसे भी अब वो इंदौर के क्षेत्र क्रमांक एक से फिर टिकट के लिए प्रयासरत हैं, यहां से पहले जीत चुकी हैं। 
 अभी वे महू से विधायक हैं और यहां भी उठ रही आवाजों में स्थानीय का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है-शायद इसे उनके सलाहकार भी भांप गए हों। पर यही एक कारण नहीं है।राऊ, महू का आलू अन्य देशों में भी फेमस है लेकिन घोषणा के बाद भी अब तक महू में आलू क्लस्टर नहीं बन पाया है।सर्व ब्राह्मण समाज की आस्था से जुड़ी-परशुराम की जन्मस्थली जानापाव तीर्थ क्षेत्र में साढे 12 करोड़ के विकास कार्यों का काम भी गति नहीं पकड़ पाया और सिंचाई परियोजनाओं के काम की गति बेहद धीमी होने से किसान वर्ग भी खुश नहीं है। योजनाओं की धीमी गति पर तो उन्हें अधिकारी जवाब देते रहेंगे लेकिन महू मंडी में हुए हितग्राही सम्मेलन की तैयारी के लिए महू डाक बंगले पर बुलाई बैठक में जिस तरह वरिष्ठ नेताओं राधेश्याम अग्रवाल, सुरेंद्र चौहान आदि ने उन पर प्रश्न दागे उसका जवाब उन्हें भी नहीं सूझा। इस बैठक में क्या नहीं कहा, वो सारी चर्चा भोपाल तक भी पहुंच गई है। 
सर्वे में चकरघन्नी होते दावेदार 
                      कांग्रेस में चल रहे सर्वे-सर्वे की छिपाछई से दावेदार हैरान हैं। दिल्ली में बड़े नेताओं के लिए मुंहदिखाई को जाते हैं तो यहां क्यों आए? कमलनाथ कह रहे हैं तीन सर्वे में जिनका नाम आएगा उन पर विचार करेंगे।अब राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव में काम करने वाली अपनी टीम को 230 सीटों पर सर्वे के लिए लगा दिया है।इसका सर्वे, उसका सर्वे, किस-किस का सर्वे… समझ नहीं पा रहे रहैं दावेदार। ऊपर से कमलनाथ यह कह रहे हैं कि अब तक 3500 लोगों के आवेदन मिल चुके हैं। 
और 12 लाख को मिलेगा फायदा
                      मुख्यमंत्री की लाड़ली बहना गेम चेंजर हो जाए तो अचरज नहीं होगा।अब इस योजना की हितग्राहियों को उम्र में छूट की सीमा कम कर दी है। पहले 23 साल तक की लाड़ली बहनों को हजार-हजार मिल रहे थे। अब इस उम्र को और दो साल घटा कर 21 साल कर दिया है। दो साल कम करने से करीब 12 लाख लाड़ली बहना भी हजार रु की हकदार हो गईं हैं। यही नहीं गांवों में उन महिलाओं को भी शामिल कर लिया है जिनके परिवार में ट्रेक्टर है, यानी चार पहिया का बंधन समाप्त। सरकार को इससे कोई मतलब नहीं कि जिसके यहां ट्रेक्टर होगा उस परिवार में कार भी तो होगी। 
ढील दो..ढील दो… पेंच नहीं लड़ाना है..! 
                     पतंगबाजी में तो जब विरोधी की पतंग काटना हो तो ढील दे देकर एकदम पेंच लड़ा कर काटने का दांव लगाया जाता है लेकिन चुनाव सिर पर हो तो सरकार की मजबूरी है ढील देना।सागर की घटना में कलेक्टर-एसपी जिस तरह दिग्विजय सिंह के सम्मुख बैठे वह इन अधिकारियों के लिए लूप लाइन की भूमिका तैयार कर चुका है। वन भूमि पर अतिक्रमणकर्ताओं को बलपूर्वक हटाने के मामले में अब वन विभाग वेट एंड वॉच का तरीका अपना रहा है।इसी तरह इस्तीफा देने वाली निशा बांगरे पर तो नियमों के तीर चल रहे हैं लेकिन उस सर्वधर्म सम्मेलन को रोकने की अपेक्षा रुको-देखो का रवैया अख्तियार करना पड़ा-कारण वही आदिवासी-दलित-पिछड़ा वर्ग।

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