top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << इनकी कौन सुनेगा... ? 1.. खंभों पर टंगे लाखों के होर्डिंग... अस्पताल में पानी को तरसते लोग....

इनकी कौन सुनेगा... ? 1.. खंभों पर टंगे लाखों के होर्डिंग... अस्पताल में पानी को तरसते लोग....


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                         पिछले कुछ दिन से एमपी की सरकार पीएम के स्वागत की तैयारियों में जुटी थी!राजधानी में जिस तरफ से पीएम का काफिला  गुजरा,उस हिस्से के जर्रे जर्रे को चमकाया गया है।हालांकि आदिवासी बहुल शहडोल जिले का  पीएम का दौरा खराब मौसम की वजह से फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। लेकिन उन दो गांवों की तस्वीर भी बदल गई है जहां उन्हें जाना था।यह पूछना बेमानी होगा कि इस तस्वीर की चमक कब तक बनी रहेगी और इनकी तकदीर कब बदलेगी ! कार्यक्रम कोई भी हो उस पर रुपया तो खर्च होता ही है!जितना बड़ा कार्यक्रम उतना बड़ा खर्चा!प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तो और ज्यादा खर्चा!अगर "स्वामिभक्ति" दिखानी हो तो और भी ज्यादा खर्चा!भले ही "हांडी में "एक दाना" न हो और सिर पर औकात से ज्यादा कर्ज हो! पर जश्न तो मनाना ही है!
 इसी भावना के साथ पीएम के दौरे का जश्न मना!राजधानी के लोग घंटों परेशान हुए!बंद सड़कों पर निकलने का रास्ता खोजते रहे!उनके मन के भाव तो वे ही जाने लेकिन लाल परेड ग्राउंड के मैदान पर यह बताया जा रहा था कि...पीएम.. एमपी के मन में हैं और पीएम के मन में एमपी!
                        मन के इस खेल में मेरे मन में अचानक संन्यासिन उमा भारती का एक ट्वीट आ पहुंचा!इसके साथ ही ध्यान आया राज्य मानव अधिकार आयोग के एक प्रेस नोट का !
 पहले बात उमा भारती की!आपको याद दिला दूं कि बीस साल पहले इन्हीं दिनों उमा भारती बीजेपी की बारात की "दूल्हा" बनी थीं।उन्हें बीजेपी ने मुख्यमंत्री चेहरा बनाया था।तब उन्होंने वह कारनामा किया था जो बीजेपी के तत्कालीन दिग्गज नेता नही कर पाए थे।उमा की अगुवाई में बीजेपी ने दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को नेस्तनाबूद कर दिया था। बाद में वक्त बदला!उमा कुछ महीने बाद ही कुर्सी से उतर गईं।फिर वे पार्टी से भी बाहर हुईं।अपनी अलग पार्टी भी बनाई।फिर उनकी घर वापसी हुई। यूपी से विधायक और सांसद बनी!मोदी की सरकार में मंत्री भी रहीं।फिलहाल वे बीजेपी में हैं।पूरी तरह से खाली हैं।इसलिए बड़े बड़े ट्वीट के जरिए प्रधानमंत्री और एमपी के मुख्यमंत्री से एकतरफा संवाद करती रहती हैं।
                    सिर्फ 14 दिन पहले यानी 13 जून 2023 को उन्होंने अपने बड़े भाई शिवराज सिंह पर  "पूरा भरोसा" जताते हुए एक लंबा ट्वीट किया था।उमा ने अपने इस ट्वीट में प्रदेश में सरकारी अस्पतालों और सरकारी स्कूलों की दुर्दशा का विस्तार से जिक्र किया था।उन्होंने कहा था - प्रदेश में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में गरीब और अमीर के बीच भयानक फर्क है।सरकारी अस्पतालों और सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है।अपने ट्वीट में उमा भारती ने कहा था - अभी चुनाव में चार महीनों का समय है।इस अवधि में बहुत कुछ किया जा सकता है!उन्होंने सरकारी अफसरों और नेताओं को सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने और सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने का सुझाव भी दिया था। उमा ने सरकारी आयोजनों और नेताओं की सभाओं पर होने वाले भारी भरकम खर्च का जिक्र करते हुए कहा था - हमारी सभाओं पर करोड़ों  खर्च हो रहे हैं!उधर सरकारी अस्पतालों के बर्न यूनिट और आईसीयू में एसी न होने की वजह से गरीब लोग,जिनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या अधिक है,तड़प रहे हैं! यह असमानता हमारे लिए शर्मनाक है ! उमा ने लिखा था - प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के बीच भयावह अंतर ने मुझे बेचेन कर दिया है।यही स्थिति सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की है।उमा ने यह भी कहा था कि अगले 4 महीनों में इन्हें तो ठीक किया ही जा सकता है ! उमा के इस ट्वीट के ठीक 7 दिन  बाद मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने राजधानी भोपाल में करोड़ों की लागत से बने हमीदिया अस्पताल के नए 11 मंजिला भवन में मरीजों के लिए पीने के पानी की उचित व्यवस्था न होने पर अस्पताल के अधीक्षक से जवाब तलब किया था।आयोग के मुताबिक 11 मंजिल की बिल्डिंग में सिर्फ एक वाटर कूलर लगा है।वह भी चौथी मंजिल पर।मरीजों के परिजनों को पीने के पानी के लिए चौथी मंजिल पर ही आना पड़ता है।
आयोग रोज ऐसे सवाल उठा रहा है।सुनवाई कितनी हो रही है,यह किसी को पता नहीं !
                       उमा ने आवाज उठाई!आयोग ने समस्या का संज्ञान लिया!यह तो सिर्फ 2 उदाहरण हैं।जमीनी हकीकत यह है कि पूरे प्रदेश में मूलभूत सुविधाओं का भारी अभाव है।सरकार हवाई जहाज से तीर्थ यात्रा करा रही है।लाडली बहना को हर महीने एक हजार दे रही है।पर वह बुजुर्गों को सही और समय पर इलाज मिले ,इसकी उचित व्यवस्था नही कर पा रही है।न ही उसने लाडली बहनों के बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूलों पर ध्यान दिया है।दावा यह है कि सरकार ने सैकड़ों सीएम राइज स्कूल खोले हैं।जमीनी हकीकत यह है कि 20 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल सिर्फ एक टीचर के भरोसे चल रहे हैं।
हजारों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बेसिक सुविधाएं नही हैं!
 दूसरी ओर सरकार इवेंट मोड में है!सीएम कैट वाक करके सुहानी तस्वीर दिखाते हैं!कभी विकास यात्रा तो कभी गौरव यात्रा निकालते हैं।तीर्थ यात्रा तो चल ही रही है!
 प्रधानमंत्री आज आए हैं।पूरा शहर उनके होर्डिंग और कटआउट से भरा पड़ा है।जल्दी ही फिर आएंगे!यही सब फिर होगा!
आज भी उनकी अगवानी पर प्रोटोकॉल के हिसाब से "भारी" का खर्च हुआ!आगे भी होगा!होता ही रहेगा।सरकार के पास पैसा नहीं है।कोई बात नहीं।बजट से ज्यादा कर्ज है।उससे भी कोई फर्क नहीं..थोड़ा और ले लेगी ! रही बात उमा भारती और मानव अधिकार आयोग की!अरे वे बोलते ही रहते हैं!उनकी कौन सुनेगा ?सीएम या पीएम?शायद दोनों में से कोई नहीं!
 सुनें भी क्यों?उमा की आवाज में आम आदमी की आवाज तो मिल नही रही है।और आयोग.!उसका तो काम यही है! आप तो प्रदेश की रंगीन तस्वीर देखिए!!!

Leave a reply