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चुनावी चटखारे,*हिंदू राष्ट्र का आह्वान और भक्ति दिवस पर उत्तम ज्ञान*


कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार

प्रदेश की चुनावी राजनीति में दोनों दलों के लिए आदिवासी मतदाता बेहद प्रिय हो जाते हैं।एक सप्ताह के बीच दो चर्चित संत पश्चिम निमाड़ क्षेत्र में थे।धर्म और राजनीति का घालमेल समझने वाले लोगों में दोनों ही संतों को  लेकर आम धारणा है कि आरएसएस के अधिक समीप हैं।
इनमें एक तो हैं महामंडलेश्वर ईश्वरानंद (उत्तम स्वामी) जी वो कांग्रेस शासन नेताओं के जितने प्रिय थे उससे अधिक संघ-भाजपा के नजदीक और मार्गदर्शक हैं। बाकी दलों में भी उनके प्रति आस्था रखने वाले कम नहीं हैं। दूसरे हैं बागेश्वरधाम वाले पं धीरेंद्र शास्त्री, जो बीते एक दशक से भी कम समय में अपने पर्चों के कारण प्रसिद्धि के शिखर पर जा पहुंचे हैं।हिंदू राष्ट्र को लेकर उनकी आक्रामक शैली ने एक तरह से उन्हें संघ विचारों का ब्रांड एंबेसेडर ही बना दिया है। बात जब हिंदू राष्ट्र की चल रही हो और दोनों एक दूसरे से सहमत नहीं हो तो पश्चिम निमाड़ के लोगों को आश्चर्य ही तो होगा।बड़वानी में पं शास्त्री का दरबार लगा था।बाकी जगहों की तरह यहां भी उन्होंने दोबार हिंदू राष्ट्र बनाने की बात दोहराते हुए कहा कि तुम सब हमारा साथ दो, हम सब मिलकर हिंदू राष्ट्र बनाएंगे।
उनका आह्वान यहां के लोग भूले भी नहीं थे कि समीपस्थ खरगोन जिले में कांग्रेस नेता अरुण, सचिन यादव ने उप मुख्यमंत्री रहे पिता सुभाष यादव की पुण्यतिथि को भक्ति दिवस के रूप में मनाया।इस समारोह में संत-महात्मा तो खूब थे लेकिन महामंडलेश्वर ईश्वरानंद (उत्तम स्वामी) मुख्य आकर्षण थे।उन्होंने पं धीरेंद्र शास्त्री के हिंदू राष्ट्र वाले आह्वान को एक तरह से नासमझी करार देते हुए कह दिया उनको पता नहीं है हिंदू राष्ट्र समाप्त नहीं हुआ है। दुनिया में हिंदुस्तान था और रहेगा। वे (पं धीरेंद्र शास्त्री कुछ लोगों को संतुष्ट करने के लिए इस तरह की बातें कर रहे हैं। 
यादव बंधुओं द्वारा हर वर्ष भक्ति दिवस मनाने की घोषणा भी की गई है। इस आयोजन में जिस तरह से संघ विचारों के नजदीकी संतों की मौजूदगी रही है उसे देख कर कांग्रेस चौकन्नी हो गई है कि कहीं यादव बंधुओं की भक्ति भाजपा के रंग में एकाकार होने के लिए तो नहीं मचल रही है।वैसे भी एक पखवाड़े से मुख्यमंत्री, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, गृहमंत्री अरुण यादव पर डोरे डालने में लगे हुए हैं। 

सेटिंग वाली सीटों पर अब शाह की नजर

भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश की हर सीट की समीक्षा में  पाया है कि कुछ सीटें ऐसी हैं जहां प्रदेश भाजपा के नेता कमजोर प्रत्याशी उतार कर कांग्रेस प्रत्याशी की जीत में अदृश्य मदद करते रहे हैं।राघोगढ़ में दिग्विजय या जयवर्द्धन सिंह, लहार में डॉ गोविंद सिंह, पिछोर में केपी सिंह, भीतरवार (ग्वालियर) में लाखन सिंह यादव, डबरा में सुरेश राजे हर चुनाव में कैसे जीत जाते हैं ? समीक्षा में सारे तथ्य सामने आने के बाद इन सीटों पर प्रत्याशी चयन का अंतिम फैसला अमित शाह की मर्जी से होगा।इसके साथ कमलनाथ का छिंदवाड़ा। इस संसदीय क्षेत्र से लंबे समय से कमलनाख जीते हैं।अभी जब कमलनाथ सीएम बने थे तब यहां से नकुलनाथ सांसद बने थे। वैसे कमलनाथ एक बार 1997 में हुए उपचुनाव में भाजपा के सुंदरलाल पटवा से हार गए थे लेकिन अगले साल (1998 में) फिर हुए चुनाव में पटवा भी कमलनाथ से हार गए थे।

चुनाव मैदान में निपटने की धमकी  
इंदौर स्थित गोम्मटगिरि तीर्थ क्षेत्र से अपने मंदिर के लिए रास्ता मांग रहे गुर्जर समाज वाला विवाद हल नहीं होने से अब जैन समाज चुनाव मैदान में सरकार को सबक सिखाने का दंभ भर रहा है। संतों के वीडियो संदेश, ज्ञापन आदि का भी सरकार पर असर ना होने के बाद प्रदेश के जैन मतदाता बहुल क्षेत्रों से समाज द्वारा पचास प्रत्याशी उतारे जाएंगे।महावीर जयंती पर हर साल अलग अलग जुलूस निकालने वाले दोनों समाज प्रत्याशियों को जिताने में कितनी एकजुटता दिखाएंगे ये तो वक्त बताएगा। 

जयकारा लगाइये आ रही हैं शौर्य यात्राएं 

धर्मांतरण के मुद्दे पर तो विहिप और बजरंग दल बोलते ही रहे हैं। केंद्रीय प्रबंध समिति की रायपुर में हुई बैठक में शौर्य यात्राओं का निर्णय लिया गया है। चुनाव से एक-दो महीने पहले पूरे देश में शौर्य यात्राएं निकालने का निर्णय किया है तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए।जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां तो ऐतिहासिक स्वागत होना ही ताज्जुब तो तब होना चाहिए जब बजरंग दल पर प्रतिबंध की मानसिकता वाले कांग्रेस नेता और कर्नाटक में भी धर्मांतरण और परिवारों में विघटन का कारण बन रहे ओटीटी प्लेटफार्म के विरुद्ध इन शौर्य यात्राओं के लिए पलक-पावड़े बिछाए जाएं। 


साहित्यकारों की भी चिंता है 


प्रदेश सरकार को चुनावी साल में साहित्यकारों-कलाकारों की भी चिंता हो गई है।अब दैवीय विपत्ति, बीमारी दुर्घटना का शिकार होने पर उन्हें भी 50 हजार तक की वित्तीय सहायता मिलेगी। सरकार ने कलाकार-साहित्यकार कल्याण कोष तो पहले से गठित कर रखा है अब उसमें इस प्राववधान को जोड़ने के साथ दिव्यांगता के उपचार या मौत पर परिवार को हर माह एक हजार की सहायता भी मिलेगी।

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