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पुलिस के लिए लाठियां भांजना आसान है?


कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार
                       पलासिया चौराहे पर बीती रात लाठीचार्ज सहित जो कुछ हुआ, उसकी खबर भोपाल तक पहुंच गई है। अब मुख्यमंत्री खबर लेंगे इंदौर के पुलिस प्रशासन की। दो-चार अधिकारी हटा दिए जाएंगे। बजरंग दल कार्यकर्ताओं पर दर्ज प्रकरण वापस ले लिए जाएंगे और पिटने वाले भी संतुष्ट हो जाएंगे। इस घटना से एक बात तो साफ हो गई कि पुलिस के लिए पिटाई करना उतना मुश्किल नहीं है, जितना नशे का कारोबार करने वालों को सबक सिखाना। मुख्यमंत्री को कार्यकर्ताओं के बीच जाने में एतराज नहीं है, कलेक्टर को जनसुनवाई में लोगों की परेशानियां सुनने, हल करने में संकोच नहीं होता, लेकिन बड़े पुलिस अधिकारियों को अब तक समझ नहीं आया है कि इंदौर की नब्ज को कैसे समझें! यह भी ठीक है कि हर आंदोलन में ज्ञापन लेने पहुंच जाना बड़े अधिकारियों की शान के खिलाफ है, लेकिन पलासिया चौराहे पर जो बात बिगड़ी... उसका कलंक पुलिस प्रशासन के माथे पर ही लगा है। ट्रैफिक में नंबर वन होने का संकल्प याद नहीं रहे तो यह शहर माफ कर सकता है, लेकिन नशे का कारोबार, पब कल्चर इंदौर को तबाह करे... यह तो सपनों का शहर कहने वाले भी पसंद नहीं करेंगे। आखिर क्या कारण है कि कमाई वाले थानों का स्टॉफ ड्रग कारोबारियों और शराब परोसने वाले पब पर उतनी ईमानदारी से कार्रवाई क्यों नहीं कर पाता, जितनी मुस्तैदी बीती रात हड्डी-पसली तोड़ने में दिखाई। नाइट कल्चर का पहले स्वागत और अब विरोध कर रहे जनप्रतिनिधियों ने सरकार को नशा कारोबार-पब कल्चर की असलियत बताने का साहस दिखाया होता तो पलासिया चौराहे वाली घटना नहीं होती। इंदौर के जिला-पुलिस प्रशासन की यह छवि क्यों बनती जा रही है कि बस मुख्यमंत्री की ही सुनना है? इस शहर की बेहतरी के उतने ही सपने यहां रहने वालों को भी आते हैं। नशा बेचने वाले इसलिए सक्रिय हैं, क्योंकि नशा करने वाले इन्हें ढूंढ़ते हुए पहुंच जाते हैं। इन समाजद्रोहियों से ज्यादा दोषी तो वे अभिभावक भी हैं, जिन्हें यह फिक्र नहीं होती कि बच्चे क्या कर रहे हैं। केरला स्टोरीज के खतरे बताने वाले संगठनों को जितनी बेटियों की चिंता है, उतनी ही चिंता इन बिगड़ेल नशेड़ियों की भी करें। पुलिस को कोसने, प्रदर्शन, पथराव से नशे का कारोबार रुकना नहीं है। पुलिस को कोसने से पहले उन अभिभावकों को भी जागरुक करें, जिनकी संतानें इंदौर की छवि बिगाड़ने में मददगार बन रही हैं। मुख्यमंत्री घोषणा तो पहले भी कर चुके हैं कि जमीन में गाड़ दूंगा, लेकिन जरा पता तो करें इंदौर के थानों में ड्रग कारोबारियों के खिलाफ कितने प्रकरणों में प्रभावी कार्रवाई हुई है? बहुत संभव है कि बाकी शहरों के मुकाबले ड्रग कारोबार में भी इंदौर नंबर वन ही साबित हो, तब रहवासियों को यह पूछने का हक भी है कि पुलिस कमिश्नरी के बाद भी सुधार तो नजर आया ही नहीं।

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