आदि शंकराचार्य जयंती
आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन दक्षिण भारत के नन्बूदरी ब्राह्राण के कुल में हुआ था। आदि शंकराचार्य को मात्र 8 वर्ष की छोटी आयु में सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त था। हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में जन्म हुआ था। आदि शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली थे। आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 साल की आयु में हिमालय क्षेत्र में समाधि ले ली थी। आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करते हुए देश के चारों दिशाओं में चार प्रमुख मठों को स्थापना की थी। आदि शंकराचार्य ने सनातन परंपरा को एक सूत्र में पिरोने के लिए देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की. जिसमें दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में गोवर्धन मठ, पश्चिम में शारदा मठ और उत्तर में ज्योतिर्मठ स्थापित किया. आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इन पावन पीठों पर उनकी परंपरा से जुड़े आचार्य जुड़े हुए हैं, जिन्हें शंकराचार्य कहकर संबोधित किया जाता है | आदि शंकराचार्य ने वेद और वेदांत के जरिए सनातन परंपरा को देश के कोने-कोने में फैलाने का काम किया, आदि शंकर ने अपने प्रवचन एवं भक्ति स्तोत्रों के जरिए लोगों को ब्रह्म का सही ज्ञान कराया, आदि शंकराचार्य ने सत्य सनातन धर्म की रक्षा के लिए दशनामी संन्यासियों के अखाड़े बनाए और उन्हें वन, अरण्य, पुरी, आश्रम, भारती, गिरि, सरस्वती आदि के नाम दिए | जिसे आज के समय में चार धाम के नाम से जाना जाता है।
शंकराचार्य जी ने जगन्ननाथ पुरी, रामेश्वरम, द्वारिका और बद्रीनाथ धाम की स्थापना की थी। नम्बूदरी ब्राह्राण के वंशज आज भी बद्रीनाथ के मंदिर में रावल होते हैं। इसके अलावा ज्योतिषमठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्राण ही बैठते हैं। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म को सुदृढ़ करने मे महत्वपूर्ण कार्य किया था। आदि शंकराचार्य ने देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में अतुलनीय काम किया था। आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों की भी स्थापना में अपना योगदान दिया था। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। तब ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की। वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्राण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब वह मात्र तीन साल के थे तब पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। आठ साल की उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की अवस्था में 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदारनाथ में देह को त्यागकर परमात्मा मे विलीन हो गए। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।सनातन परंपरा में आदि शंकराचार्य जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है,