अक्षय तृतीया
उज्जैन। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया अक्षय तृतिया कहलाती है, ऐसी मान्यता है अक्षय तृतिया पर किए दान का कभी क्षय नहीं होता अर्थात इस दिन किये गए स्नान, दान, जप का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है | अक्षय तृतीया की तिथि को भगवान परशुराम और हयग्रीव अवतरित हुए थे। त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि से माना जाता है। इस तिथि को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। इसमें किसी भी तरह का शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त का विचार नहीं किया जाता है। अक्षय तृतिया, देवउठनी एकादशी एवं बसंत पंचमी विवाह के लिए यह तिथियाँ अबूझ मुहूर्त की श्रेणी में आती है। इस दिन स्वर्ण की खरीदी का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अक्षय तृतीया पर सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं। अक्षय तृतीया पर गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है, अपने पितर देवों के नाम से तर्पण करना बहुत शुभ होता है।
इस दिन खरीदी गई वस्तु अक्षय समृद्धि प्रदान करती है वही आज लक्ष्मी नारायण के पूजन तथा जल से भरे अक्षय घट का दान करना महाफल प्रदान करेगा। शिव मंदिरों में जल से भरे कलश पर खरबूजा रखकर दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान शिव के मंदिर में गलंतिका बंधन का विधान भी है।
अक्षय तृतीया के अवसर पर उत्तराखंड में श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं। पुष्टीमार्गीय वैष्णव मंदिरों में अक्षय तृतीया पर ठाकुरजी की दिनचर्या बदलेगी। भगवान को गर्मी ना लगे वैष्णवजन इसके जतन करेंगे। भगवान को चंदन अर्पित किया जाएगा, शीतल सामग्री का भोग लगेगा एवं मोगरे की कली, चंदन व मोती के आभूषणों का शृंगार होगा। मोगरे के फूलों से फूल बंगला सजाया जाएगा।