पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
८4/८४ उत्तरेश्वर(दुर्दरेश्वर) महादेव
पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
वैशाख के परम पवित्र मास मे सप्तपुरियों मे एक भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी की पांच कोस (११८ किमी )की परिक्रमा
पंचक्रोशी यात्रा का चतुर्थ पड़ाव
८4/८४ उत्तरेश्वर(दुर्दरेश्वर) महादेव - महाकाल वन के उत्तर मे स्थित दिव्य शिवलिंग
भगवान शिव माता पार्वती से कहते है, हे प्रिये सुनो, उत्तरेश्वर का माहात्म्य श्रवण मात्र से जरा व्याधि एवं जन्म मरण के चक्र से छुटकारा दिलाकर समस्त पापो से मुक्ति प्रदान करता है |
पूर्वकाल मे अयोध्या के राजा परीक्षित का राज था, वह बड़े प्रतापी और न्यायप्रिय थे | एक समय राजा शिकार खेलने वन को गया जहां शिकार करते - करते वह गहन वन मे प्रवेश कर गया एवं भूख प्यास से पीड़ित हो वन मे भटकने लगा | वन मे राजा ने मनोहर कमल सरोवर देखा वहां वह विश्राम करने लगा, तभी उसे मधुर स्वर सुनाई दिया | राजा उस ओर गया, वहां एक सुन्दर कन्या पुष्पों को चुन रही थी | राजा उस कन्या पर मोहित हो गया और कन्या के समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा, जिसे कन्या ने सशर्त स्वीकार किया की राजा सदैव उसके समीप रहेगा और जल से सदैव मुझसे दूर ही रखेगा | राजा ने शर्त को स्वीकार कर लिया एवं कन्या को महल ले गया, राजा कन्या से आसक्त हो राज धर्म भुला बैठा | मंत्री ने राजा को सन्देश भिजवाया परन्तु राजा ने इस और कोई ध्यान ही नहीं दिया | मंत्री को एक युक्ति सूझी उसने महल के उपवन मे एक सुन्दर सरोवर का निर्माण करवाया एवं राजा से कन्या के साथ उपवन मे आने का आग्रह किया | राजा कन्या के साथ उपवन मे भ्रमण कर रहा था, तभी उसे एक सुन्दर सरोवर दिखाई दिया वे दोनो उस सरोवर के समीप गए, राजा ने कन्या से सरोवर के शीतल जल से स्नान का आनंद लेने का आग्रह किया, परन्तु जैसे ही वह कन्या सरोवर के जल मे उतरी वह अदृश्य हो गयी, राजा ने कन्या को सरोवर मे बहुत ढूंढा परन्तु कन्या कही दिखाई नहीं दी | राजा क्रोधित हो उठा और उसने सैनिको को सरोवर के सभी मेंढको(दुर्दरो) को मारने का आदेश दिया, जिससे भयभीत हो दुर्दरो का राजा आयु वहां उपस्थित हुआ और उसने राजा से कहा जिस कन्या को आप ढूंढ रहे है वह कन्या मेरी पुत्री है और नागलोक का राजा नागचूड़ उसे ले गया है, आप नागलोक जाकर मेरी पुत्री को छुड़ा लाये | तत्पश्चात राजा नागलोक जाकर कन्या को ले आया, तब राजा ने आयु से पूछा आपको दुर्दर की योनि कैसे प्राप्त हुई | दुर्दरराज आयु ने पूर्वजन्म की कथा कही, एक समय मैंने गालव ऋषि का उपहास किया, तपस्या से उनके अंग गलने लगे थे मैंने उन्हें दुर्दर कहकर उपहास उड़ाया जिससे रुष्ट होकर ऋषि ने मुझे श्राप दिया की तुमने मुझे दुर्दर कह कर उपहास उड़ाया, तुम भी दुर्दर हो जाओ | तब मैंने ऋषि से क्षमा मांगी परन्तु उन्होंने कहा मेरा श्राप निष्फल नहीं हो सकता, अगले जन्म मे तुम दुर्दरो के राजा बनोगे, जब तुम अपनी कन्या इश्वाकु वंश के प्रतापी राजा को सौपकर महाकाल वन जाओगे तब वहां उत्तरेश्वर के दर्शन से श्राप मुक्त हो जाओगे | तत्पश्चात दुर्दरो के राजा आयु ने अपनी कन्या राजा को सौपकर महाकाल वन प्रस्थान किया, जहां महाकाल वन के उत्तर मे स्थित उत्तरेश्वर शिवलिंग का दर्शन किया जिसके परिणामस्वरूप वह रत्न जड़ित रथ पर आरूढ़ होकर जिसका वंदन सिद्ध, गंधर्व आदि भी कर रहे थे, वासवलोक(इंद्रलोक) प्रस्थान किया | तब समस्त देवतागण भी महाकाल वन आये और उत्तरेश्वर का दर्शन किया और उत्तरेश्वर को दुर्दरेश्वर नाम से सम्बोधित किया और कहा की यह दिव्य शिवलिंग दुर्देश्वर नाम से विख्यात होगा क्यूंकि राजा आयु ने इनके दर्शन मात्र से दुर्दर की योनि से मुक्ति प्राप्त कर समस्त पापो एवं श्राप से मुक्ति प्राप्त की |
जो कोई भी मनुष्य, कलियुग मे चतुर्दर्शी के दिन उत्तरेश्वर(दुर्दरेश्वर) महादेव का दर्शन, पूजन करेगा, वह समस्त जप, तप, दान, यज्ञ का फल प्राप्त करेगा और अंत मे मोक्ष प्राप्त कर अपनी मातृपक्ष की १०० एवं पितृपक्ष की १०० पीढ़ियों को भी पापो से मुक्त करता है |