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पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की


८3/८४ बिल्वेश्वर महादेव 

पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
वैशाख के परम पवित्र मास मे सप्तपुरियों मे एक भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी की पांच कोस (११८ किमी )की परिक्रमा
पंचक्रोशी यात्रा का तृतीय पड़ाव
 ८3/८४ बिल्वेश्वर महादेव  - महाकाल वन के पश्चिम मे स्थित दिव्य शिवलिंग                                                                                                                                                                                               

भगवान शिव माता पार्वती से कहते है, हे प्रिये बिल्वेश्वर का माहात्म्य श्रवण मात्र से समस्त पापो से मुक्ति  प्रदान करता  है |
आदि कल्प मे जब श्री ब्रह्मा ध्यानस्थ थे तब कल्पवृक्ष उत्पन्न हुए जिनमे  बिल्वपत्र को श्री वृक्ष की संज्ञा दी गयी| श्री वृक्ष के छांव मे एक स्वर्ण आभा से युक्त पुरुष विश्राम कर रहा था, व विभिन्न फलो का सेवन कर आयुधो से सुसज्जित  था| ब्रह्मा ने जब उस पुरुष को देखा तो उसे "बिल्व" नाम प्रदान किया, देवराज इंद्र ने भी बिल्व को भूपति बनने का प्रस्ताव रखा, परन्तु उसने इंद्र से उनका वज्र मांग लिया, इस पर देवराज ने कहा की जब भी तुम इसका स्मरण करोगे यह तुम्हारे पास आ जाएगा| तत्पश्चात बिल्व पृथ्वी पर राज भोगने लगा, उसकी मित्रता वेद, वेदांगो के ज्ञाता, ब्रह्मनिष्ठ कपिल मुनि से हुई, दोनों एक समय धर्म चर्चा कर रहे थे तभी उनमे विवाद होने लगा, कि ब्राह्मण श्रेष्ठ है या राजा | क्रोध मे बिल्व ने कपिल मुनि पर वज्र से प्रहार कर दिया जिससे उनके शीश के दो टुकड़े हो गए, पर अपनी ब्रह्मविद्या के प्रताप से वह पुनः जीवित हो उठे | तब हे देवी, कपिल मुनि मेरे पास आये और विभिन्न प्रकार से मेरी स्तुति कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने मुनि को युद्ध मे अजेय रहने एवं वज्र से सुरक्षा प्रदान की | पुनः कपिल मुनि बिल्व से धर्मचर्चा करने गए, दोनों मे विवाद हुआ और बिल्व ने वज्र से मुनि पर प्रहार किया परन्तु उन  पर वज्र का कोई प्रभाव नहीं हुआ| बिल्व ने श्री हरी कि स्तुति की और उनसे प्रार्थना की, आप कपिल मुनि से यह कहे की वे बिल्व से भयभीत है, श्री हरि विष्णु ने कपिल मुनि से यही अनुरोध किया तो  उन्होंने अस्वीकार कर दिया, मैं किसी देव, दानव से भयभीत नहीं हूँ जिससे रुष्ट होकर श्री हरी और कपिल मुनि मे युद्ध होने लगा, तभी समस्त देवता  श्री ब्रह्मा के साथ प्रकट हुए और कहा की, हे प्रभु आप तो सर्वज्ञ है, कपिल मुनि को भगवान शिव से युद्ध मे अजेय का वरदान प्राप्त है, प्रभु आप इन्हे क्षमा कर दे|
तत्पश्चात बिल्व को  मेरे द्वारा कपिल मुनि को दिए अजेय वरदान  एवं  श्री हरी और कपिल मुनि के मध्य हुए भीषण युद्ध के सम्बन्ध मे ज्ञात हुआ तो वह प्रलाप करने लगा | उस समय वहां देवराज इंद्र उपस्थित हुए और बिल्व से कहा तुम महाकाल वन के पश्चिम मे स्थित देवताओ द्वारा पूजनीय दिव्य शिवलिंग का पूजन करो जिससे तुम्हे भी युद्ध मे विजय प्राप्त होगी | तब बिल्व महाकाल वन आया, यहाँ शिवलिंग का पूजन अर्चन विभिन्न सुगन्धित द्रव्यों, फूलो से किया उसी समय वहां कपिल मुनि आये उन्होंने बिल्व को मेरे दिव्यलिंग का पूजन करते देखा, मुनि को बिल्व के शरीर मे मेरा(सदाशिव ) ही  स्वरुप दिखाई दिया, तब कपिल मुनि ने कहा तुमने मुझे जीत लिया है और मुनि ने बिल्व से मित्रता स्वीकार की | बिल्व ने उस दिव्य शिवलिंग की  स्तुति, प्रार्थना, पूजन अर्चन किया, जिससे यह दिव्य शिवलिंग बिल्वेश्वर के नाम से जगत मे प्रसिद्द हुआ |  
जो कोई भी मनुष्य, बिल्वेश्वर महादेव के दर्शन करता है वह समस्त पापो से मुक्त होकर, अपनी दस हज़ार पीढ़ियों सहित अंत मे मेरे ही धाम को प्राप्त होता है | उनके पितृ सभी पापो से मुक्त हो जाते है और ब्रह्महत्या जैसे भयंकर पापो से भी व्यक्ति छुटकारा पाता है | जो कोई व्यक्ति प्रदोष के दिन भगवान बिल्वेश्वर का दर्शन पूजन करेगा वह अपने समस्त कायिक, मानसिक, वाचिक पापो से मुक्ति पाकर पुनः इस संसार मे नहीं आयेगा |

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