पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
१९/८४ नागचंद्रेश्वर महादेव
पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
वैशाख के परम पवित्र मास मे सप्तपुरियों मे एक भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी की पांच कोस (११८ किमी )की परिक्रमा
पंचक्रोशी यात्रा का प्राम्भिक देवस्थल - पंचक्रोशी यात्री यात्रा से पहले भगवान नागचंद्रेश्वर से श्रीफल अर्पित करके बल प्राप्त करते है एवं यात्रा के समापन पर मिट्टी के अश्व(घोड़े) समर्पित करके बल पुनः लौटाते है|
१९/८४ नागचंद्रेश्वर महादेव - महाकाल वन मे स्थित दिव्यलिंग के दर्शन से निर्माल्य का लंघन करने वालों को मुक्ति मिलती है|
भगवान शिव माता पार्वती से इस दिव्य लिंग की कथा कहते है, महाकाल वन मे स्थित दिव्यलिंग के दर्शन से निर्माल्य का लंघन करने वालों को मुक्ति मिलती है
एक समय समस्त देवता, ऋषि, गंधर्वों की सभा में एकत्रित हुए, तभी वहां देवर्षि नारद आये, इन्द्रदेव ने उनसे प्रश्न किया की पृथ्वी पर भुक्ति-मुक्तिदायक क्षेत्र कौन सा है, देवर्षि ने कहा समस्त भूमण्डल पर परम पुनिता उज्जयिनी स्थित रमणीक महाकाल वन है, जोकि प्रयाग से भी दस गुना अधिक पुण्यदायी है।
तत्पश्चात समस्त देवता, देवराज सहित उज्जयिनी आये परन्तु उन्होंने देखा की महाकाल वन मे सहस्त्रो दिव्य शिवलिंग है जिससे यहाँ पर अंगुल बराबर मात्र भी स्थान नहीं है और देवताओ ने विचार करके की निर्माल्य लंघन से जनित दोष से बचने के लिए समस्त देवता पुनः स्वर्ग को प्रस्थान कर गए, तभी मार्ग मे उन्हें आकाश मार्ग से जाते हुए रथारूढ़ गण को देखा | समस्त देवता विचार करने लगे यह कौन है, जो की रूद्र गण के सामान अपने तेज से प्रकाशमान है जिसकी स्तुति गान किन्नर आदि भी कर रहे है, सभी देवताओ ने उस गण से पूछा की कौन से पुण्य, तप से तुम्हे यह पद प्राप्त हुआ है | तब उस गण ने बताया भगवान् महाकाल की स्तुति एवं पूजन से वह प्रसन्न हुए एवं मुझे अपना गण स्वीकार किया, मुझे नाम दिया नागचन्द्र(नागचण्ड) | देवताओ ने पूछा महाकाल वन मे निर्माल्य लंघन के दोष से तुम कैसे बचे , तब उस गण ने बताया की ईशानेश्वर के उत्तर-पूर्व मे स्थित दिव्य लिंग के दर्शन मात्र से निर्माल्य लंघन के पाप से मुक्ति मिलती है तत्पश्चात समस्त देवता महाकाल वन आये एवं दिव्य शिवलिंग का पूजन किया एवं समस्त देवताओ ने कहा क्यूंकि इस शिवलिंग का वर्णन नागचन्द्र ने देवताओ को किया, आज से यह नागचंद्रेश्वर(नागचण्डेश्वर), के नाम से समस्त भूमण्डल पर पूजनीय होगा |