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पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की


८१/८४ पिंगलेश्वर महादेव
पंचक्रोशी यात्रा - यात्रा एक अटूट श्रद्धा एवं अद्भुत विश्वास की
वैशाख के परम पवित्र मास मे सप्तपुरियों मे एक भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी की पांच कोस (११८ किमी) की परिक्रमा
पंचक्रोशी यात्रा का प्रथम पड़ाव
 ८१/८४ पिंगलेश्वर महादेव - महाकाल वन मे पूर्व मे स्थित दिव्य  लिंग के दर्शन मात्र से देवता प्रसन्न रहेंगे तथा वह स्वर्ग प्राप्त करेगा, अमरावती नगरी उसके वश में रहेगी। उसके कुल में कभी धर्म का नाश नहीं होगा तथा उसके पितृ अक्षय रूप से तृप्त रहेंगे।

महेश्वर भगवान शिव ने उमा से कहा सुनो देवी कान्यकुब्ज मे सुन्दर कन्या पिंगला थी, जिसकी सुंदरता अद्वितीय थी, उसके पिता वेदपाठी, धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे, जिनका नाम पिंगल था एवं उसकी माता का नाम पिंगाक्षी था जो की अल्प काल मे काल कवलित हुई, जिससे उसके पिंगला के पिता भी संसार से क्षुब्ध हो उठे और अपनी पुत्री सहित वन को चले गए | कुछ समय पश्चात उसके पिता की भी मृत्यु हो गयी जिससे दुखी हो  पिंगला ने  भी आत्महत्या करने की ठान ली | तभी वन मे उसे एक साधु मिले जिसने उसे पूर्वजन्म की कथा कही, उन्होंने बताया की पूर्व मे तुम नृत्य गीत तथा वीणावादन में निपुण सुंदरी कन्या थी । एक गुणी ब्राह्मण जिसने चार वर्ष तक तुम्हारे साथ रमण किया उसकी एक शूद्र ने तुम्हारे घर में हत्या कर दी। ब्राह्मण के माता-पिता ने तुम्हे(पिंगला) को पुत्र वियोग का कारण मानकर श्राप  दिया कि वह जन्मांतर तक पतिहीना होगी। पिंगला ने ब्राह्मण वेशधारी धर्म से पूछा यदि मैं अधम थी तो मेरा जन्म ब्राह्मण के यहां कैसे हुआ। तब ब्राह्मण ने बताया कि तुमने  ब्राह्मण को राजा की कैद से मुक्त करवाया था, इस पुण्यफल से तुमने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। पिंगला ने कहा हे देव! आप कौन हैं तथा मुझे भवबंधन से मुक्त होने का उपाय बताएं। तब उन साधु वेषधारी ने कहा की मे धर्म हूँ , तब धर्म ने उसे महाकालवन भेजा जहां एक दिव्य लिंग के दर्शन से पूर्वजन्म के पापो से मुक्ति प्राप्त करोगी । यह दिव्य लिंग महाकाल वन के उत्तर मे स्थित है, पिंगला ने शिवलिंग का दर्शन किया जिससे वह समस्त पातको से मुक्त होकर भव बंधन से मुक्त हुई और यह दिव्य लिंग पिंगलेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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