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शुक्रवार को ऐसे करे मॉं लक्ष्‍मी जी की आराधना



आज शुक्रवार है। मां लक्ष्मी जी का वार है लक्ष्मी जी को हिंदू धर्म में सुख-समृद्धि, धन, वैभव तथा ऐश्वर्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि लक्ष्मी जी की पूजा और मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के घर में कभी धन का अभाव नहीं रहता है। आइये मिल कर मां लक्ष्मी का ध्यान करेंं।

श्री लक्ष्मी चालीसा

दोहा :-
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो ह्रदय में वास।

मनोकामना सिद्ध करि, पुरबहु मेरी आस।।

सोरठा :-

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूँ.

सबविधि करौ सुवास, जयजननि जगदंबिका।

सिन्थु सुता मैं सुमिरों तोहिं,

ज्ञान बुध्दि विद्या दो मोहि।

तुम समान नहीं कोई उपकारी,

सब विधि पुरबहु आस हमारी।

जै जै जै जननी जगदम्बा,

सबकी तुम ही हो अवलम्बा।

तुम ही हो सब घट घट की वासी,

विनती यही हमारी खासी।

जग जननी जय सिन्धु कुमारी,

दीनन की तुम हो हितकारी।

बिनबो नित्य तुमहिं महारानी,

कृपा करौ जग जननि भवानी।

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी,

सुधि लीजै अपराध बिसारी।

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी,

जग जननी विनती सुन मोरी।

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता,

संकट हरो हमारी माता।

क्षीर सिन्धु जब विष्णु मथायो,

चौदह रत्न सिन्थु में पायो।

चौदह रत्न में तुम सुखरासी,

सेवा कियो प्रभु बन दासी।

जब जब जन्म प्रभु जहाँ लीन्हा,

रूप बदल तहं सेवा कीन्हा।

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा,

लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं,

सेवा कियो ह्रदय पुलकाहीं।

अपनाया तोहि अन्तर्यामी,

विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी।

तुम सम प्रबल शक्त़ि नहिं आनी,

कहंलौ महिमा कहौं बखानी।

मन क्रम वचन करै सेवकाई,

मन इच्छित वांछित फल पाई।

तजि छल कपट और चतुराई,

पूजहिं विविध भाँति मनलाई।

और हाल मैं कहौं बुझाई,

जो यह पाठ करै मन लाई।

ताको कोई कष्ट न होई,

मन इच्छित पावै फल सोई।

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी,

त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी।

जो यह पढ़े और पढ़ावे,

ध्यान लगाकर सुनै सुनावै।

ताको कोई न रोग सतावे,

पुत्रादि धन सम्पत्ति पावै।

पुत्रहीन अरु सम्पतिहीना,

अन्ध, बधिर, कोढ़ी अति दीना।

विप्र बोलाय कै पाठ करावै,

शंका दिल में कभी न लावै।

पाठ करावै दिन चालीसा,

ता पर कृपा करैं गौरीशा।

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै,

कमी नहीं काहु की आवै।

बारह मास करै जो पूजा,

तेहि सम धन्य और नहिं दूजा।

प्रतिदिन पाठ करै मन माही,

उन सम कोई जग में कहुं नाहीं।

बहुविधि क्या मैं करौ बड़ाई,

लेय परीक्षा ध्यान लगाई।

करि विश्वास करै व्रत नेमा,

होय सिद्ध उपजे उर प्रेमा।

जय जय जय लक्ष्मी भवानी,

सब में व्यापित हो गुण खानी।

तुम्हारो तेज प्रबल जग माहीं,

तुम सम कोउ दयालु कहुं नाही।

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै,

संकट काटि भक्ति मोहिं दीजै।

भूल चूक करि क्षमा हमारी,

दर्शन दीजै दशा निहारी।

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी,

तुमहि अक्षत दुःख सहते भारी।

नहिँ मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में,

सब जानत हो अपने मन में।

रूप चतुर्भुज करके धारण,

कष्ट मोर अब करहु निवारण।

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई,

ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई।

दोहा :-

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का नाश।।

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर।।

श्री महालक्ष्मी जी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु विधाता।।

उमा, रमा,ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।

दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्याता, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।।

तुम पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रधान-प्रकाशित नी, भवनिधि की त्राता।।

जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता, मन नही घबराता।।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

खान पान का वैभव, सब तुमसे आता।।

शुभ-गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदक्षि-जाता।

चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता।।

महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता।

उर आनन्द उपजे, पाप उतर जाता।।

।। जय श्री महालक्ष्मी माता ।।

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