संकष्टी चतुर्थी : श्री गणेश करते है भक्तों की मनोकामना पूरी
संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त और पढ़िए कार्तिकेय-गणेशजी की कथा
मार्गशीर्ष मास के चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी है। इसे गणाधिप संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। 3 दिसंबर 2020 को संकष्टी चतुर्थी का पर्व है। ऐसी मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्रत रखने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पर्व विशेष रूप से बुद्धि के देवता भगवान गणेश भगवान का है। इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है। इससे भगवान गणेश प्रसन्न होकर व्रतधारी की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे बताते हैं कि यह व्रत रात्रि में चंद्रदर्शन के साथ पूरा होगा। दिनभर व्रत रखें। रात में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद गणेशजी की पूजा करें। उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दूर्वा, चंदन और मीठा अर्पित करें, कथा श्रवण करें और फिर प्रसाद ग्रहण करें।
संकष्टी चतुर्थी की कथा
पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।तब गणेश ने कहा- 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।
संकष्टी चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त-
सर्वार्थ सिद्धि योग – दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से लेकर 04 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक।
चन्द्रोदय का समय – शाम 7 बजकर 58 मिनट।
गोधूलि पूजा – शाम 5 बजकर 12 मिनट से शाम 6 बजकर 58 मिनट तक