जीवितपुत्रिका व्रत : महत्व, कथा, विधि और मुहूर्त
10 सितंबर को सुहागिन महिलाएं हर साल की तरह इस बार भी जितिया व्रत रखकर अपनी संतान की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। जिउतिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। जिउतिया व्रत मुख्यरूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। जिउतिया व्रत को मुख्य रूप से संतान की सुख और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है। व्रत के पहले दिन नहाए खाए, दूसरे दिन पर निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन पारण किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक रखा जाता है। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से होगा। यह तिथि 10 सितंबर, गुरुवार को दोपहर तीन बजकर 4 मिनट पर रहेगी।
जितिया व्रत के एक दिन पहले महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा करती है फिर इसके बाद भोजन करती हैं। इसके बाद जितिया व्रत के पारण करने के बाद ही अन्न को ग्रहण करेंगी। जितिया व्रत में व्रती महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। पारण वाले दिन पर सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाती हैं। जितिया व्रत वाले दिन पर झोर भात, भरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।
व्रत-कथा
इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।
अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा मुहूर्त-
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 9 सितंबर (बुधवार) को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से आरंभ हो चुकी है, जो कि 10 सितंबर (गुरुवार) को दोपहर 3 बजकर 4 मिनट तक है। जीवित्पुत्रिका व्रत उदया तिथि में रखा जाता है। ऐसे में यह व्रत 10 सितंबर को है।
पारण का समय-
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 11 सितंबर को सूर्योदय के बाद दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी। मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण दोपहर 12 बजे तक कर लेना चाहिए।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि-
- सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें।
- इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें।
- तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ाकर कर दें।
- अब शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें।
- अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं।
- अब उन्हें भोग लगाएं।
- अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं।
- दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें।
- अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना करें।
- इसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें।