ऐसे हुआ था राधा रानी का प्राकट्य
देवी राधा, कृष्ण की प्रेयसी और सात्विक प्रेम की अनूठी मिसाल है। श्रीकृष्ण के लिए प्यार राधारानी के दिल में बसा हुआ था। यह प्रेम का वह स्वरूप था जिसकी मिसाल कहीं ढूंढे नहीं मिलती है। राधा कृष्ण की बांसुरी, उससे निकलने वाले सुर, उनके मोरपंख, वैजयंती माला सभी से प्यार करती थी। इसलिए दुनियाभर में आठ पटरानियों और सोलह हजार रानियों के पति होते हुए भी श्रीकृष्ण की आराधना सिर्फ राधा संग की जाती है।
महाराजा वृषभानु की पुत्री थी राधा
शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य हुआ था, इसलिए भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाई जाती है। पद्म पुराण के अनुसार राधा जी महाराजा वृषभानु की सुपुत्री थीं। राधा जी के माता का नाम कीर्ति था।एक बार जब महाराजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे उस समय उनको भूमि पर राधाजी मिलीं थीं।
वृषभानु इनका लालन-पालन अपनी पुत्री मानकर करने लगे। राधाजी का विवाह रायाण नामक व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। पुराणों के अनुसार राधा माँ लक्ष्मी की अवतार थी। जब श्रीकृष्ण द्वापर युग में जन्म लिया तो देवी लक्ष्मी भी राधा रूप में धरती पर प्रकट हुई थी। राधा उम्र में श्रीकृष्ण बड़ी थी, लेकिन उनके जीवन का सबसे अच्छा दौर श्रीकृष्ण के सानिध्य में बीता। वेद पुराणों में राधाजी को कृष्ण वल्लभा कहा गया है।
राधाष्टमी व्रत कथा
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार गोलोक में निवास करने वाली राधा को एक शाप की वजह से पृथ्वी पर आकर कृष्ण का वियोग सहना पड़ा था।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार राधा गोलोक से कहीं बाहर गई हुई थी उस वक्त श्रीकृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। तभी राधा वहां पर आ गई और विरजा के साथ श्रीकृष्ण को देखकर अत्यंत क्रोधित हो गईं। आवेश में आकर श्रीकृष्ण एवं विरजा को भला बुरा कहने लगी। अपमानित होने से लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी।
श्रीकृष्ण के प्रति राधा के आवेशपूर्ण शब्दों को सुनकर श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा गुस्से में आ गए। सुदामा श्रीकृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगे। सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा ज्यादा नाराज हो गई और सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी बगैर सोंचे विचारे राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा के शाप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना जिसका वध बाद में भगवान शिव ने किया। सुदामा के शाप की वजह से राधा को मनुष्य रूप में जन्म लेकर धरती पर आना पड़ा।