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विशेष नक्षत्र में होगी हरतालिका व्रत की पूजा



सिद्ध योग के साथ हरतालिका तीज के मौके पर शुक्रवार को महायोग बन रहा है। जिसमें आराधना करने से श्रद्धालु महिलाओं एवं युवतियों की मनोकामना पूर्ण होगी। आचार्यों का कहना है कि मनपसंद वर की प्राप्ति के लिए कन्याएं और अखंड सौभाग्य की कामना से सौभाग्यवती महिलाएं रात भर जागकर निर्जला व्रत को करती हैं। जिसमें भगवान शिव की पूजन की जाती है। इस दिन चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे, अमृत काल भी रहेगा और सूर्य का उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र और सिद्घि योग भी बन रहा है। साथ ही शुक्रवार के दिन इस पर्व के होने से इसका महत्व और भी बढ गया है क्योंकि शुक्रवार शुक्र का दिन हैं और शुक्र पति-पत्नी के प्रेम का कारक ग्रह हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित संजय पुरोहित ने बताया कि विशेष सिद्धि योग एवं ततिल करण के विशेष शुभ महायोग में इस पर्व को मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि रात्रि के तृतीय प्रहर में हस्त नक्षत्र का प्रवेश होगा। इससे यह पर्व विशेष फलदाई हो जाएगा। इस व्रत को हस्त नक्षत्र में करने का ही विधान है।

छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विवाहित महिलाएं मायके में जाकर पूजा करती हैं। इस व्रत को अपने पति की लंबी आयु सुख-शांति एवं प्रगति के लिए इस व्रत को किया जाता है। महिलाएं सोलह सिंगार करती हैं और दुह्लन की तरह सज संवर का तैयार होकर अपने मायके से आए वस्त्र, आभूषण पहनकर दुह्लन की तरह दिखती हैं।

मुहूर्त
पं पवन पारीक ने बताया कि भाद्र पद शुक्ल तृतीया, 21 अगस्त की सुबह सूर्योदय से रात 1ः58 बजे तक रहेगी। 22 अगस्त की सुबह शिव परिवार की बालू से तैयार प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद व्रत संपन्न होगा। सौभाग्य की कामना और पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं इस व्रत को करती हैं और अगले दिन सुबह व्रत का पारणा करती हैं। इसके साथ ही सारी रात पूजन अर्चन एवम भजन-कीर्तन किया जाता है।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया शुक्रवार को आज हरतालिका तीज का व्रत करने का विधान है। इस दिन किसी पवित्र जलाशय में स्नान कर श्रद्धालु महिलाएं दिन भर व्रत रखती हैं। इसके बाद रात्रि के प्रथम प्रहर से लेकर चतुर्थ प्रहर तक भगवान शिव की रात भर जागकर आराधना करती हैं। इसके लिए सुंदर मंडप बनाया जाता है। कई गांव और शहर के मोहल्लों में रात्रि जागरण के कारण महिलाएं सामूहिक रूप से यह पूजन करती हैं जिसमें किसी एक श्रद्धालु के यहां बड़े से स्थान में केले के पत्तों का मंडप बनाकर वहां भगवान शिव की तस्वीर या बालू से बने शिवलिंग का निर्माण कर उसका पंचामृत से स्नान करती हैं। सूर्योदय के पहले तक चार प्रहर तक पूजन कर आरती करती हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।

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