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भाद्रपद अमावस्‍या : पितरों को किया जाता है तर्पण, मिलती है कालसर्प दोष से मुक्ति



यूं तो अमावस्या तिथि पर पितरों की आराधना तथा तर्पण का विशेष महत्व है, लेकिन भाद्रपद अमावस्या इस कार्य के लिए अत्यंत शुभ बताई गई है। इस दिन पितरों के लिए किया गया हर कार्य उन तक पहुंचता है तथा उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस बार भाद्रपद अमावस्या 18 अगस्त, मंगलवार को है। यह तिथि 18 अगस्त को सुबह 10:39 बजे से शुरू होकर 19 अगस्त को सुबह 08:11 बजे तक रहेगी। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इस दिन विशेष पूजा कर इसके मुक्ति पा सकते हैं। जिन लोगों को कालसर्प दोष के कारण जीवन में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वे योग्य पंडित या ज्योतिषी के माध्यम से विशेष पूजा करवाएं।

कालसर्प दोष निवारण की पूजा में चांदी के नाग-नागिन की पूजा की जाती है। पूजा के बाद इन्हें नदी में प्रवाहित कर दें। कालसर्प दोष ही नहीं, इस दिन किए गए तमाम उपाय, टोटके आदि भी शीघ्र फल प्रदान करते हैं।

भाद्रपद माह की अमावस्या इसलिए होती है बहुत खास
भाद्रपद अमावस्या की अपनी खासियत हैं। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुश एकत्रित की जाती है। धार्मिक कार्यों, श्राद्घ कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिए। लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिए और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिए आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिए सूर्योदय का समय उचित रहता है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठना चाहिए और मंत्रोधाारण करते हुए दाहिने हाथ से एक बार में ही कुश को निकालना चाहिए।

कुश एकत्रित करने के लिहाज से ही भादौ मास की अमावस्या का महत्व नहीं है बल्कि इस दिन को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। पिथौरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस बारे में पौराणिक मान्यता भी है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिए उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।

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