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इस विधि से करे कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर व्रत


पिछले वर्ष की भांति इस बार भी तिथि नक्षत्र का संजोग नहीं मिलने के कारण 11 अगस्त के बाद अब 12 अगस्त को भी कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है। कुछ स्थानों पर तो 13 अगस्त को भी जन्माष्टमी बनाई जाएगी। ज्यादातर पंचांगों में 11 और 12 अगस्त को जन्माष्टमी है, लेकिन ऋषिकेश और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में 13 अगस्त को भी जन्माष्टमी मनाने की तैयारी है। पंडित राजेश उपाध्याय बताते हैं कि वैष्णव मत के मुताबिक 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना श्रेष्ठ है। इसलिए मथुरा (उत्तर प्रदेश) और द्वारिका (गुजरात) दोनों जगहों पर 12 अगस्त को ही जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। जगन्नाथपुरी में 11 अगस्त की रात को कृष्ण जन्म हुआ। वहीं काशी और उज्जौन जैसे शहरों में भी 11 को ही जन्माष्टमी मनाई गई। जन्माष्टमी का त्योहार भादप्रद महीने की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत ऐसे रखें
जिन दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं, उस दिन व्रत रखें। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे। स्नान करें। कान्हा को भी शुद्ध जल से स्नान करवाएं। उन्हें नए वस्त्र पहनाएं। झूला लगाएं। दिनभर सेवा करें। रात्रि में 12 बजे कान्हा की पूजा करें, आरती करें, और इसके बाद अन्न ग्रहण करें।

12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाने के तर्क
पंडित राजेश उपाध्याय के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के योग में हुआ था। लेकिन, इस बार तिथि और नक्षत्र का संयोग एक ही दिन नहीं बन रहा है। मंगलवार, 11 अगस्त को अष्टमी तिथि पूरे दिन और रातभर रहेगी। इस वजह से 11 अगस्त की रात जन्माष्टमी मनाना ज्यादा शुभ रहेगा। पंडित राजेश उपाध्याय का कहना है कि 11 अगस्त को ही श्रीकृष्ण के लिए व्रत उपवास और पूजा पाठ करना चाहिए। अष्टमी तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय काल में रहेगी, लेकिन सुबह आठ बजे ही तिथि बदल जाएगी। ये दिन अष्टमी और नवमी तिथि से युक्त रहेगा। इसलिए 11 अगस्त को ही जन्माष्टमी पर्व मनाना उचित नहीं होगा।

तिथि और नक्षत्र के कारण होता है तारीखों में भेद
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है। लेकिन ग्रह नक्षत्रों की चाल में बदलाव होने से कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही नहीं होते। इसलिए कुछ लोग जन्म तिथि को महत्वपूर्ण मानते हुए अष्टमी तिथि को ये पर्व मनाते हैं और कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र वाले दिन मनाते हैं। हालांकि, दोनों ही दिन ये पर्व मनाना उचित है। इसलिए संप्रदाय भेद के कारण ये पर्व तिथि और नक्षत्र प्रधान माना जाता है।

जगन्नााथपुरी में 11 व द्वारिका में 12 अगस्त
द्वारिका धाम मंदिर के पुजारी पं. प्रणव भाई के मुताबिक, 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाना शुभ है। वहीं, जगन्नाथपुरी के पुजारी पं. श्याम महापात्रा के मुताबिक, ओडिशा सूर्य उपासक प्रदेश है। इसलिए यहां सूर्य की स्थिति को देखते हुए त्योहार मनाए जाते हैं। इसलिए पुरी मंदिर में 11 अगस्त को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव और 12 अगस्त को नंदोत्सव मनाया जाएगा।

मथुरा में भक्तों के बिना जन्मोत्सव
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नक्षत्र रोहिणी था। जो कि इस बार 12 अगस्त की रात में है। नक्षत्र की स्थिति देखते हुए मथुरा में कृष्ण जन्मोत्सव पर्व 12-13 अगस्त की रात में मनाया जाएगा। कोरोना के चलते इस बार भक्तों के बिना ही कृष्ण जन्मोत्सव पर्व मनाया जाएगा। इस उत्सव को टीवी के जरिए देखा जा सकेगा।

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