गायत्री जयंती : कैसे हुआ था मॉं गायत्री का अवतरण, क्या है गायत्री मंत्र की महिमा
हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में गायत्री मंत्र का विशेष महत्व होता है। समस्त वेदों की उत्पति माता गायत्री के द्वारा मानी जाती है। इसी कारण से इन्हें वेदमाता भी कहा जाता है। वेदमाता के अतिरिक्ति गायत्री माता को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पर मां गायत्री का जन्म हुआ था। हालांकि गायत्री जयंती की तिथि को लेकर कई तरह के मत है। कई जगहों पर ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा की तिथि पर गायत्री जयंती मनाई जाती है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग गंगा दशहरा के अगले दिन यानी एकादशी की तिथि पर भी मनाते हैं। कुछ स्थानों पर श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भी गायत्री जयंती मनाने की परंपरा होती है। मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इसी तिथि पर पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था, जिसके बाद ज्येष्ठ माह की पवित्र एकादशी को गायत्री जयंती के रूप में जाना जाने लगा।
कौन हैं मां गायत्री
मां गायत्री को हिंदू धर्म के चारों वेदों, पुराणों और श्रुतियां की जननी माना जाता है, इसलिए इन्हें वेदमाता भी कहा गया है। वेद माता के आलावा इन्हें देवमाता भी कहा जाता है क्योंकि तीनों देव ब्रह्रा, विष्णु और महेश की यह आराध्य हैं। मां गायत्री को ज्ञान की देवी भी कहा गया है। देवी पार्वती, सरस्वती और माता लक्ष्मी की अवतार भी मां गायत्री है।
मां गायत्री का अवतरण
ऐसी मान्यता है कि गायत्री मंत्र का अवतरण सृष्टि के आदिकाल में ब्रह्रााजी के मुख से हुआ। तब ब्रह्रााजी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुख से चारों वेदों के रूप में किया था। सृष्टि के शुरुआत में गायत्री मंत्र की महिमा सिर्फ देवी-देवताओं तक ही थी लेकिन बाद में विश्वमित्र ने कठोर तपस्या करके गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
गायत्री मंत्र की उपासना के लाभ
सनातन संस्कृति में चार प्रमुख आधारशिलाएं हैं जिसमें गायत्री मंत्र, गीता, गंगा और गौ हैं। माँ गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्म तेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। इनकी उपासना से मनुष्य को यह सब आसानी से प्राप्त हो जाता हैं। देवी गायत्री की उपासना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अथर्ववेद में उल्लेख है किया गया है कि मां गायत्री आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी है।
देवी गायत्री का विवाह
शास्त्रों में देवी गायत्री के विवाह के संबंध में प्रसंग है। एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया। परंपरा के अनुसार किसी भी पूजा या अनुष्ठान में पति संग पत्नी का होना अनिवार्य माना जाता है। ऐसे में यज्ञ के समय ब्रह्माजी को पत्नी सहित ही बैठना था, लेकिन किसी कारणवश ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री को आने में देर हो गई। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था, इसलिए ब्रह्मा जी ने वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।