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सुहागिन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए मॉं धूमावती देवी की पूजा


धूमावती जयंती पुरे देश में बड़े उत्साह और प्यार से मनाया जाता है. इस त्यौहार को धूमावती महाविद्या के रूप में भी जाना जाता है. यह देवी दस तांत्रिक देवी का एक समूह है, यह त्यौहार उस दिन के रूप में मनाया जाता है, जब देवी धूमावती के शक्ति रूप का अवतार पृथ्वी पर हुआ था. यह देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप है. मासिक दुर्गा अष्टमी पूजा विधि महत्व व इतिहास यहाँ पढ़ें. धूमावती को एक ऐसे शिक्षक के रूप में वर्णित किया गया है जोकि ब्रह्माण्ड को भ्रामक प्रभागों से बचने के लिए प्रेरित करते है. उनका बदसूरत रूप भक्त को जीवन की आन्तरिक सच्चाई को तलासने की प्रेरणा देता है. देवी को अलौकिक शक्तियों के रूप में वर्णित किया गया है. उनकी पूजा भी शत्रुओं के विनाश के लिए की जाती है.  

धूमावती माता की कथा
हिन्दू पौराणिक कथाओं में से एक के अनुसार भगवान शिव जी की पत्नी पार्वती ने उनसे भूख लगने पर कुछ खाने की मांग की. जिसके बाद शिव जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वो कुछ खाने का प्रबंध करते है, लेकिन जब शिव कुछ देर तक भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाते है, तब पार्वती ने भूख से बेचैन होकर शिव को ही निगल लिया. इसके बाद भगवान शिव के गले में विष होने की वजह से पार्वती जी के शरीर से धुवाँ निकलने लगा. जहर के प्रभाव से वह भयंकर दिखने लगी उसके बाद शिव ने उनसे कहा की तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जायेगा, और भगवान शिव के अभिशाप की वजह से उन्हें एक विधवा के रूप में पूजा जाता है. क्योकि उन्होंने अपने पति शिव को ही निगल लिया था. इस रूप में वह बहुत क्रूर दिखती है जो कि एक हाथ में तलवार धारण किये हुए रहती है. 

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार जब शिव जी की पत्नी सती को पता चला कि उनके पिता दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है, लेकिन उसमें उनको और उनके पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया है. उस यज्ञ में जाने से शिव ने उन्हें बहुत रोका लेकिन उनके विरोध के बावजूद भी वह यज्ञ में गयी, जहा बड़े बड़े प्रसिद्ध हस्ती और संत आये थे, लेकिन सती ने ऐसा महसूस किया कि उनके पिता उनके तरफ़ ध्यान नहीं दे रहे है. जिस वजह से वह बहुत अपमानित महसूस करने लगी और उग्र होकर यज्ञ की हवन कुंड में कूद कर आत्महत्या कर ली, और अपना बलिदान कर दी. उसके कुछ क्षण के बाद ही देवी की उत्पति हुई जिसे धूमावती के नाम से जाना जाता है.

देवी को एक रथ की सवारी करते हुए उस पर लगे ध्वजा में कौवा के प्रतीक को दिखाते हुए एक बदसूरत बुजुर्ग विधवा महिला के रूप में दर्शित किया गया है, जिसके बाल सफ़ेद होते है और वह सफ़ेद साड़ी में दिखाई देती है. उनकी उपस्थिति भले ही खतरनाक और डरावनी है लेकिन वो हमेशा पापियों और राक्षसों का विनाश करने के लिए और धरती को इन जैसे पापियों से मुक्त करने के लिए अवतरित होती थी, जोकि इस बात का प्रतीक है कि सच्चाई में विश्वास और सदाचार हर दुखों को मिटा देता है. इस दिन पूजा करने से भक्तों के सारे पाप और समस्याएं खत्म हो जाते हैं.

प्रचीन काल में ऋषि दुर्वासा और संत परशुराम ने देवी धूमकेतु की पूजा अर्चना करके विशेष शक्तियों को प्राप्त किया था. देवी को बुरी आत्माओं से सुरक्षा करने वाली शक्ति के रूप में भी पूजा जाता है, उन्हें दुनिया की समस्याओं का समाधान करने वाली देवी के रूप में काल्हप्रिया के नाम से भी संबोधित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर धूमावती जयंती के दिन देवी की एक झलक भी प्राप्त हो जाये तो देखने वाले भक्त को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है.   

धूमावती जयंती के लिए अनुष्ठान या रश्म रिवाज (Dhumavati Jayanti rituals)

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