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सुहागिन अपने पति की मंगल कामना के लिए रखती है वट सावित्री व्रत



महिलाएं सुख-समृद्धि और अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री का व्रत करती है। मान्यता है कि इस व्रत के करने से सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से वापस ले आई थी। इसलिए महिलाए इस व्रत को करती है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती है। यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण की अमावस्या तिथि को किया जाता है।

वट सावित्री की कथा
प्राचीनकाल में भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया और हवनकुंड में मंत्रोच्चारण के साथ रोजाना एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक राजा अश्वपति का यह क्रम जारी रहा। राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर सावित्रीदेवी प्रकट हुई और उन्होंने वर दिया कि राजा के यहां क तेजस्वी कन्या का जन्म होगा। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने वाली कन्या का नाम सावित्री रखा गया। सावित्री काफी सुंदर थी। बड़ी होने पर उसके लायक योग्य वर न मिलने के कारण से सावित्री के पिता दुःखी थे। इसलिए उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने के लिए भेजा।

सावित्री भावी वर की तलाश में तपोवन में भटकने लगी। तपोवन में साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रह रहे थे। द्युमत्सेन का राजपाट छीन लिया गया था। राजा के पुत्र सत्यवान को सावित्री ने पति कके रूप में चुन लिया। नारदमुनि को जब इस विवाह के संबंध में पता चला तो वह अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह आप क्या कर रहे हैं? सत्यवान गुणवान हैं, बलवान हैं धर्मात्मा हैं और वह अल्पायु हैं। एक साल के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। महर्षि नारद के वचन सुनकर राजा अश्वपति पुत्री की चिंता सताने लगी। राजा ने पुत्री सावित्री से कहा कि पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने भावी वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। इसलिए तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।

सावित्री ने कहा कि आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। इसलिए मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी और राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में लग गई। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु की तिथि के संबंध में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे नजदीक आने लगा, सावित्री बैचेन होने लगीं। सावित्री ने तीन दिन पहले से ही उपवास प्रारंभ कर दिया। नारद मुनि द्वारा उस तिथि पर पितरों का पूजन किया।

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये और उनके साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से परेशान सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अब अपना भविष्य समझ गईं। पति सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखाई दिए। यमराज अपने साथ सत्यवान को यमलोक ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।

यमराज ने सावित्री को समझाने की काफी कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो। सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, इसलिए आप उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने तथास्थु कहा जाओ अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई दिक्कत नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राजपाट छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।

सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

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