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ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भगवान नारद है सृष्टि के प्रथम संदेशवाहक



सनातन संस्कृति की पौराणिक गाथाएं ऋषि,मुनियों, संतों और महात्माओं के किस्से-कहानियों से भरी पड़ी है। इनकी तप और तपस्या ने युगों को परिवर्तित किया है तो जनकल्याण में भी इन्होंने बड़ा योगदान दिया। शास्त्रों के ज्ञान से इन ऋषि-मुनियों ने दुनियाभर में ज्ञान का प्रकाश फैलाया तो, शस्त्रों का निर्माण कर ब्रह्माण्ड की दु,ष्टों से रक्षा भी की। ऐसे ही ब्रह्माण्ड में संदेशों का आदान-प्रदान करने वाले देवी-देवताओं के प्रिय मुनि थे नारद मुनि। नारद मुनि परम ज्ञाता थे, लेकिन उनकी पहचान खास संदेशों को देवी-देवताओं को पहुंचाने के लिए ज्यादा होती है। नारद जयंती हर साल वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। इस साल यह तिथि 9 मई, शनिवार को है।

ब्रह्माजी के सात मानस पुत्रों में से एक है
नारद मुनि का जन्म वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ थ। मान्यता है कि नारद मुनि ब्रह्मा जी के 7 मानस पुत्रों में से एक हैं। उनको ब्रह्माण्ड का पहला संवाददाता कहा जाता है। नारदजी भगवान विष्णु के परम भक्त थे और देवता के साथ दानव भी उनको बहुत सम्मान देते थे और उनसे परामर्श भी लेते थे। उन्होंने कठिन तपस्या के पश्चात ब्रह्मऋषि के पद को प्राप्त किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नारद मुनि ब्रह्रााजी की गोद से पैदा हुए थे। ब्रह्रााजी का मानस पुत्र बनने के लिए नारदजी पिछले जन्मों में कड़ी तपस्या की थी। इससे पहले पूर्वजन्म में नारद मुनि गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और उनको अपने रूप पर काफी घमंड था। उस समय इनका नाम उपबर्हण था। एक बार कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत-संगीत और नृत्य के साथ ब्रह्माजी की आराधना कर रहे थे।

शूद्र दासी के यहां लिया था जन्म
ऐसे में उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार कर वहां पर पहुंचे। उनको इस तरह विचित्र स्वांग में देखकर ब्रह्माजी अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने उपबर्हण को शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे डाला। ब्रह्मा जी के श्राप के कारण उपबर्हण को एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा। शूद्र दासी के यहां जन्म लेने के बाद भी बालक नें जीवनभर ईश्वर की भक्ति करने का संकल्प लिया। दोनों मां-बेटे सच्चे मन से साधु-संतों की सेवा करते और ईश्वर का ध्यान करते थे।

अगले जन्म में ईश्वर के दर्शन का मिला आशीर्वाद
पांच साल की आयु में उनकी मां का निधन हो गया। उसके बाद बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। एक दिन वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न होकर बैठा था, तभी ईश्वर की एक झलक उसको दिखाई दी और वह क्षणमात्र में अदृश्य भी हो गई। ऐसे में उसको ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई. बालक के लगातार तप के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा। यही बालक अगले जन्म में ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहलाए और ब्रह्माण्ड में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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