आज है मोहिनी एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
एकादशी तिथि भगवान विष्णु की प्रिय तिथि है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। हर माह में दो एकादशी तिथि आती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकले अमृत को पीने के लिए जब देव- दानव के बीच विवाद छिड़ गया था। उस समय भगवान श्रीहरी सुंदर नारी का रूप धारण कर देवता और दानवों के बीच में पहुंच गए। भगवान विष्णु के इस मोहिनी रूप से मोहित होकर अमृत कलश उनको सौंप दिया।
मोहिनी रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृतपान करवा दिया। अमृत पीकर देवता अमर हो गए। जिस दिन श्रीहरी मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे। उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए इस एकादशी को मोहिनी एकदशी कहा जाता है और इस दिन भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की उपासना की जाती है। त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ की सलाह पर भगवान श्रीराम ने इस व्रत को किया था और द्वापर युग में युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने इस व्रत को करने की सलाह दी थी।
मोहिनी एकादशी तिथि मुहूर्त
मोहिनी एकादशी तिथि - 3 मई, रविवार
मोहिनी एकादशी का प्रारंभ - 3 मई को सुबह 9 बजकर 9 मिनट से।
मोहिनी एकादशी का समापन - 4 मई को सुबह 6 बजकर 12 मिनट पर।
मोहिनी एकादशी का पारण - 4 मई , सोमवार1 बजकर 13 मिनट से 3 बजकर 50 मिनट तक।
मोहिनी एकादशी का महत्व
मान्यता है कि मोहिनी एकादशी के व्रत को करने से दुख्रों का निवारण होता है और जीवन में शांति और सुकून का अहसास होता है। इस एकादशी के व्रत को पुण्यदायी और कल्याणकारी माना गया है। भगवान श्रीराम ने और महाराज युधिष्ठिर ने अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत किया था।
मोहिनी एकादशी की पूजन विधि
मोहिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर को स्वच्छ करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। पूजास्थल पर एक पाट पर भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना करें। प्रतिमा को पंचामृत और स्वच्छ जल से स्नान करवाने के बाद कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, वस्त्र आदि श्रीहरी को समर्पित करें। घी का दीपक और धूपबत्ती जलाएं। पंचामृत, पंचमेवा, मिठाई, फल आदि का भोग लगाएं। एकादशी का कथा का श्रवण करें।
मोहिनी एकादशी व्रत के नियम
मोहिनी एकादशी के दिन रात्री जागरण करना चाहिए। जागरण के समय भजन-कीर्तन करना चाहिए। पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को भोजन करवाकर और दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए और इसके बाद स्वयं अन्न ग्रहण करना चाहिए। इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। मांसाहार, मसूर की दाल, चने, कोदों की सब्जी, पान और शहद का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करना चाहिए।