सीता नवमी : संतान प्राप्ति के लिए ऐसे करें मॉं सीता की आराधना
भारतीय जनमानस के आराध्य देव श्रीराम है और देवी सीता उनकी अद्धांगिनी। सनातन संस्कृति में श्रीराम को आदर्श मानकर ही राजकाज से लेकर के घर-परिवार के समस्त कार्य संपन्न किए जाते हैं। देवी सीता को हिंदुस्तानी समाज में मां का दर्जा दिया गया है और भगवान श्रीराम के साथ उनकी आराधना की जाती है उनसे सुख-शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। सीताजी को महाराजा जनक की पुत्री होने की वजह से जानकी भी कहा जाता है। इन्ही जानकी देवी की जयंती वैशाख मास की नवमी तिथि को होती है। इस साल यह 1 मई शुक्रवार को है। कहीं पर 2 मई शनिवार को भी मनाई जाएगी।
नवमी तिथि को हुआ था सीताजी का प्राकट्य
शास्त्रोक्त मान्यता है कि वैशाख मास की नवमी तिथि को देवी सीता का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस दिन को जानकी नवमी के नाम से मनाया जाता है। जिस तरह श्रीराम नवमी रामजी का प्रगटोत्सव है, उसी तरह जानकी नवमी देवी जानकी का जन्मोत्सव है। शास्त्रों में श्रीराम को भगवान विष्णु का और देवी सीता को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इसलिए श्रीराम के साथ देवी सीता की पूजा का विधान है और दोनों की साथ में पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है।
जानकी नवमी के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना और संतान की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन व्रत रखकर जानकीजी की पूजा करने से देवी सीता की कृपा प्राप्त होती है। जो महिलाएं इस दिन व्रत नहीं रख सकती हैं वो जानकी स्तोत्र, श्री रामचरित मानस और सुन्दरकाण्ड का पाठ कर देवी सीता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकती है।
सीता नवमी व्रत का महत्व
जिस प्रकार राम नवमी को विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है उसी प्रकार सीता नवमी भी बहुत शुभ फलदायी है क्योंकि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु तो माता सीता लक्ष्मी का स्वरूप हैं। सीता नवमी के दिन वे धरा पर अवतरित हुई इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी माता सीता की पूजा अर्चना प्रभु श्री राम के साथ करता है उन पर भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
सीता नवमी की पूजा विधि
सीता नवमी की तैयारियां अष्टमी तिथि को प्रारंभ हो जाती है। अष्टमी को सूर्योदय के पूर्व उठकर घर की साफ-सफाई करें और घर के पूजा स्थल पर गंगाजल या किसी पवित्र नदी का जल छिड़ककर उसको स्वच्छ करें। उस जगह पर एक मंडप का निर्माण करें। इस मंडप के बीच एक आसन पर श्रीराम-सीता की प्रतिमा को विराजित करें। प्रतिमा के सामने एक कलश की स्थापना करें और व्रत का संकल्प लें।
नवमी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर श्रीराम-सीता की पूजा करें। श्रीराम- जानकी को सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, मेंहदी, हल्दी, वस्त्र समर्पित करें। पंचमेवा, पंचामृत, ऋतुफल, मिठाई, नारियल आदि का भोग लगाएं। माता सीता को श्रंगार की सोलह सामग्री समर्पित करें। दीपक और धूपबत्ती लगाएं और दोनों की आरती उतारें। ओम श्रीसीताये नमः और 'श्रीसीता-रामाय नमः का जाप करें। मान्यता है कि जानकी नवमी का व्रत करने से कन्या दान और सभी तीर्थों में स्नान का फल प्राप्त होता है।