विनायक चर्तुथी : श्रीगणेश हरते है भक्तों के कष्ट, ऐसी है व्रत की महिमा
श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि श्रीगणेश की आराधना से समस्त कष्टों का नाश होता है और मानव की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसलिए भक्त गणपति देव की उपासना विधि-विधान से करता है। श्रीगणेश की आराधना बुधवार और चतुर्थी तिथि को करना विशेष फलदायी होता है। ऐसी ही एक तिथि विनायक चतुर्थी है। विनायक चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी, वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। प्रत्योक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है।
विनायक चतुर्थी की कथा
एक बार महादेव देवी पार्वती के साथ नदी किनारे बैठे हुए थे। तभी माता पार्वती भोलेनाथ से चौपड़ खेलने को आह्वान करती है। दोनों ने चौपड़ खेलना प्रारंभ किया। अब दोनों के बीच जीत-हार का निर्णय कौन करेगा। इसको लेकर समस्या हुई। इसका समाधान कैलाशपति ने निकाला और एक घास-फूस का बालक बना कर उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। उन्होंने उस बालक से कहा कि चौपड़ के इस खेल में जीत-हार का फैसला तुम करना।
महादेव और देवी पार्वती ने खेला चौपड़
खेल प्रारंभ हुआ तो तीन बार माता पार्वती जीत गई, लेकिन बालक ने कहा की महादेव जीते हैं। इससे नाराज होकर माता पार्वती ने बालक को कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। इस पर बालक माता पार्वती से माफी मांगने लगा और कहा कि उसने ऐसा जानबूझकर नहीं किया है। बालक के माफी मांगने पर देवी पार्वती ने कहा कि आज से एक साल बाद नागकन्याएं इस स्थान पर आएगी। उन नागकन्याओं के बताए अनुसार गणेश चतुर्थी का व्रत करने से तुम्हारे कष्ट खत्म हो जाएंगे। इसके बाद शाप से ग्रस्त बालक ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया। श्रीगणेश उसकी उपासना से प्रसन्न हो गए और वर मांगने को कहा।
बालके ने कहा कि हे प्रभु! मुझे इतनी शक्ति प्रदान करें कि मैं माता-पिता को देखने कैलाश पर्वत जा सकूं। श्रीगणेश से आशीर्वाद लेकर बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। चौपड़ के खेल से देवी पार्वती महादेव से नाराज हो गई थी। उनको मनाने के लिए महादेव ने भी 21 दिन तक गणेश चतुर्थी का व्रत किया और रुठी हुई देवी पार्वती को मनाया। इसके बाद माता पार्वती ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत किया और उनकी यह इच्छा पूर्ण हुई।
गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं। नित्य कर्म से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण करें। इसके बादश्री गणेश की प्रतिमा की पूजा कुमकुम, अक्षत, गुलाल, अबीर, हल्दी, मेंहदी, सिंदूर से करें। गजानन भगवान को जनेऊ, वस्त्र आदि समर्पित करें। श्री गणेश को लड्डू, मोदक, पंचमेवा, पंचामृत, ऋतुफफल का भोग लगाएं और ब्राह्मणों को दान देकर ही भोजन ग्रहण करें।