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वरूथिनी एकादशी पर जातक को क्‍या करना चाहिए और क्‍या नहीं करना चाहिए



वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होता है। वैशाख मास में भीषण गर्मी होती है और गर्म हवाएं चलती रहती है। ऐसे में इस समय संयमित दिनचर्या का विधान शास्त्रों में बताया गया है। खाने-पीने के भी खास परहेज की सलाह दी गई है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बताते हुए कहा था कि , हे राजन! जो मानव विधि-विधान से इस व्रत को करता है उसको इहलोक में सभी सुखों की प्राप्ति के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।
शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।

।।भविष्योत्तर पुराण।।

इस व्रत को करने वाले को इस दिन कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। वरुथिनी एकादशी के दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। तामसिक आहार जैसे मांस, मसूर की दाल, चने, कोदो का शाक, शहद, नमक, तेल, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन करना, जुआ खेलना, दातुन करना, दूसरों की बुराई करना, पापी लोगों के साथ बात करना, क्रोध करना, मिथ्या भाषण आदि का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी का व्रत करने करने वाले को व्रत रखना चाहिए या फिर एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसके साथ ही परिवार के सभी सदस्यों के साथ रात्रि जागरण कर भगवद् भजन करना चाहिए। इस व्रत को करने से एक हजार गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसका महत्व गंगा स्नान के फल से भी ज्यादा है।

वरुथिनी एकादशी
दिन - 18 अप्रैल, शनिवार

वरुथिनी एकादशी का प्रारंभ - 17 अप्रैल को रात 8 बजकर 3 मिनट से
वरुथिनी एकादशी का समापन - 18 अप्रैल को रात 10 बजकर 17 मिनट तक

वरुथिनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन सुबह सूर्योदय के पूर्व उठ जाएं और स्नान आदि से निवृत्त होकर एक पाट पर कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की स्थापना करें और दोनों देवी-देवताओं की कुमकुम, हल्दी, अबीर, गुलाल, वस्त्र आदि समर्पित करें। ऋतुफल, मिठाई, पंचमेवा, पंचामृत आदि का भोग लगाएं। एक कलश की स्थापना कर उसके ऊपर आम के पत्ते के साथ श्रीफल रखें। दीपक और धूपबत्ती लगाएं। देवी लक्ष्मी और श्रीहरी की आरती करें।

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