चैत्र नवरात्रि : प्रथम दिन होती है मॉं शैलपुत्री की उपासना
नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग स्वरूप की पूजाकी जाती है। पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित होता है। इसके बाद क्रमशः ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की आराधना होती है। नवरात्रि का पहला दिन देवी शैलपुत्री की उपासना का दिन है। देवी, पर्वतों के राजा शैल की सुपुत्री थीं इसलिए इनको शैलपुत्री नाम दिया गया। माता प्रकृति की देवी हैं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। मां शैलपुत्री को देवी पार्वती का अवतार माना जाता हैं।
देवी वाहन बैल है
मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में डमरू और बाएं हाथ में त्रिशूल है। देवी का वाहन बैल है। मां शैलपुत्री के मस्तक पर अर्ध चंद्र विराजित है। माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं। माता शैलपुत्री योग की शक्ति द्वारा जागृत कर मां से शक्ति पाई जा सकती है। दुर्गा के पहले स्वरूप में शैलपुत्री मानव के मन पर नियंत्रण रखती हैं। चंद्रमा पर नियंत्रण रखने वाली शैलपुत्री उस नवजात शिशु की अवस्था को संबोधित करतीं हैं जो निश्चल और निर्मल है और संसार की सभी मोह-माया से परे है।
माता शैलपुत्री की आराधना से चंद्रमा के दोष होते हैं दूर
देवी शैलपुत्री महादेव कि अर्धांगिनी पार्वती ही है। ज्योतिषी मान्यता के अनुसार, मां शैलपुत्री चंद्रमा के दोष को दूर करती हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, मन अशांत रहता है वैसे लोगों को माता के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना करनी चाहिए। देवी शैलपुत्री की उपासना से चंद्रमा के दोष दूर होते हैं। शैलपुत्री का अर्थ होता है पर्वत की बेटी। सती के देह त्यागने के बाद उन्होंने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं।