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गुड़ी पडवा : इस दिन ब्रह्मा जी ने किया था सृष्टि का सृजन, श्रीराम का हुआ था राज्‍याभिषेक


चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन हिंदू नववर्ष का प्रारंभ हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने इस दिन विक्रम संवत का प्रारंभ किया था। पंचागों की गणना उज्जैन को नाभि स्थल मानकर की जाती है। कालगणना के प्रतीक भूतभावन भगवान महाकालेश्वर पृथ्वी की नाभि पर स्थित है। इसलिए स्कंद पुराण में कहा गया है कि

कालचक्रप्रवर्तको महाकाल: प्रतापन:

इस दिन को नववर्ष के रूप में देशभर में मनाया जाता है। इस दिन को शुभ कार्यों को करने के लिए काफी शुभ माना जाता है। इस दिन धार्मिक अनुष्ठान भी करना फलदायी माना जाता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से देवी दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्र प्रारंभ होता है। इस नवरात्र को वासंतीय नवरात्र कहा जाता है। मान्यता है कि नवरात्र के इन नौ दिनों में छह मास की शक्ति का संचय होता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने इस तिथि को सृष्टि का सृजन किया था और सतयुग का प्रारंभ भी इसी तिथि को हुआ था।

चैत्र-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ।।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन रेवती नक्षत्र में और विष्कुंभ योग में भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था। सम्राट युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। इस दिन गुड़ी पड़वा का पर्व भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने राजा बलि के अत्याचार से लोगों को मुक्ति दिलाई थी इसलिए विजय के प्रतीक के रूप में इस घरों में गुड़ी को बांधा जाता है।

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