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जिंदगी की बुरी दशा को सुधारती है दशा माता


इंसान को कई बार जीवन में अचानक से कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसी प्रतिकूल समय में उसके धैर्य की परीक्षा होती है। कई प्रयासों के बावजूद जब व्यक्ति कठिन परिस्थितियों से न उबर पाए और लंबे समय तक समस्याएं बरकरार रहे तो अंत में वह ईश्वरीय शक्ति के सामने गुहार लगाता है। ऐसे ही संकटों से उबारने वाला है दशा माता व्रत। जीवन की दिशा-दशा को सही करने की कामना से चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन दशा माता का व्रत किया जाता है। इस व्रत को जो व्यक्ति भक्ति-भाव से करता है, उसके घर से दु:ख और दरिद्रता दूर हो जाती है। 

पूजन विधि 
दशा माता का व्रत करने वाली सुहागिन महिलाएं इस पावन दिन शुभ मुहूर्त में, कच्चे सूत के 10 तार के 10 गांठ वाले डोर से पीपल की पूजा करती हैं। विधि-विधान से इस पूजा के पश्चात् व्रती महिलाएं नल-दमयंती की कथा सुनती हैं। कथा समाप्त होने पर महिलाएं पूजित डोरे को गले में बांधती हैं। इस धागे को व्रती महिलाएं पूरे साल धारण करती हैं। 

व्रत के नियम 
दशामाता का व्रत जीवन में जब तक शरीर साथ दे, तब तक किया जाता है। इस व्रत के दिन घर में विशेष रूप से साफ-सफाई की जाती है। साथ ही सफाई से जुड़े समान यानी झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा है। दशामाता व्रत करने वाली महिलाएं दिन भर में मात्र एक बार अन्न का सेवन करती हैं। इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है। मान्यता है कि दशामाता व्रत को विधि-विधान से पूरा करने पर एक साल के भीतर जीवन से जुड़े दु:ख और समस्याएं दूर हो जाती हैं। 

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