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जानकी जयंती : पति की लंबी आयु के लिए पतिव्रता रखती है व्रत



सनातन संस्कृति में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और देवी सीता की उपासना का बड़ा विधान है। सामान्य जीवन में इनके आदर्शों को आत्मसात कर जीवन को जीने की कोशिश की जाती है। सामाजिक संबंधों और गृहस्थ जीवन में उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की संकल्प लिया जाता है और उनकी आराधना कर जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न किया जाता है।

देवी सीता को पौराणिक शास्त्रों में त्याग और तपस्या का स्वरूप मानते हुए आदर्श नारी का दर्जा दिया है। शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार देवी सीता का प्रगटोत्सव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस तिथि को सीता जयंती के नाम से मनाया जाता है। शास्त्रोक्त कथा के अनुसार जब दोपहर में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी वक्त पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। हल के आगे की नोक को सीता कहा जाता है इसलिए हल जोतते समय भूमि से प्रगट हुई बालिका का नाम राजा जनक ने सीता रखा।

सौभाग्य और पति के लंबी आयु के लिए रखा जाता है यह व्रत
सीता जन्मोत्सव को महिलाएं व्रत रखती है। खासकर सुहागिन स्त्रियां अपने घर की सुख शांति और अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए इस व्रत को रखती है। मान्यता है कि इस दिन देवी सीता की पूजा करने से पृथ्वी के दान और उसके साथ सोलह महादान का फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही सभी तीर्थों का फल भी प्राप्त होता है। इस दिन व्रत का संकल्प लेकर 'ओम सीताय नम:', 'श्रीसीता-रामाय नमः' के मंत्र का जप करना चाहिए। देवी सीता का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था और राजा जनक की वो पुत्री थी इसलिए उनका एक नाम जानकी भी था।

तिथि और शुभ मुहूर्त
प्रारंभ - 15 फरवरी 2020 को दोपहर 4 बजकर 29 मिनट से

समापन - 16 फरवरी 2020 को दोपहर 3 बजकर 13 मिनट तक

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