गणेश चतुर्थी व्रत : भगवान श्री गणेश को इन मंत्रों के साथ अर्पण करे दूर्वा
बुधवार, 12 फरवरी को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया और चतुर्थी तिथि रहेगी। इस दिन सुबह 7 बजे तक तृतीया रहेगी, इसके बाद चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार चतुर्थी तिथि पर गणेशजी के साथ ही चंद्रदेव की पूजा करने की परंपरा है। इस तिथि के स्वामी गणेशजी हैं। मान्यता है कि इस दिन घर की सुख-समृद्धि की कामना से भगवान गणेश के लिए व्रत किया जाता है। शाम को चंद्र उदय के बाद चंद्रदेव की पूजा की जाती है। चंद्र देव को दूध का अर्घ्य अर्पित किया जाता है, धूप-दीप जलाकर आरती की जाती है।
कैसे कर सकते हैं गणेशजी की पूजा
गणेश चतुर्थी यानी बुधवार को सुबह उठें और स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा घर के मंदिर में स्थापित करें। अगर आप चाहें तो घर के बाहर गणेशजी के मंदिर भी जा सकते हैं। इसके बाद भगवान श्रीगणेश को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं। पूजा का धागा अर्पित करें। चावल चढ़ाएं।
गणेश मंत्र ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करते हुए दूर्वा चढ़ाएं। लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाकर गणेशजी की आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद अन्य भक्तों को बांट दें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले व्यक्ति को शाम को चंद्र दर्शन करना चाहिए, पूजा करनी चाहिए। इसके बाद ही भोजन करना चाहिए।
गणेशजी की पूजा में 12 मंत्रों का जाप करना चाहिए। ऊँ सुमुखाय नमः, ऊँ एकदंताय नमः, ऊँ कपिलाय नमः, ऊँ गजकर्णकाय नमः, ऊँ लंबोदराय नमः, ऊँ विकटाय नमः, ऊँ विघ्ननाशानाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ धूम्रकेतवे नमः, ऊँ गणाध्यक्षाय नमः, ऊँ भालचंद्राय नमः, ऊँ गजाननाय नमः।