भगवान विश्वकर्मा ने किया था देवताओं की बस्ती का निर्माण
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुशिल्पी माना जाता है। उन्होंने देवताओं के लिए महलों, भवनों और हथियारों का निर्माण किया था। भगवान विश्वकर्मा शिल्प के देवता माने जाते हैं, इसलिए शिल्पकला से जुड़े लोग उनकी जयंती को विधि-विधान से मनाते हैं। इस दिन कारीगर अपने औजारों, मशीनों और कलपूर्जों की पूजा करते हैं और तकनीक में बेहतर कौशल का वरदान मांगते हैं। इस साल विश्वकर्मा जयंती 7 फरवरी शुक्रवार को है।
भगवान विश्वकर्मा जन्म की कथाएं
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र धर्म थे। धर्म के पुत्र थे वास्तुदेव। वास्तुदेव और अंगिरसी को जो पुत्र हुआ उसका नाम विश्वकर्मा था। वहीं स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देव गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ था। भगवान विश्वकर्मा इन्ही भुवना ब्रह्मवादिनी के पुत्र हैं। महाभारत में इनके जन्म का उल्लेख मिलता है। वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया। विश्वकर्मा ने धरती पर महल, हवेली, वाहन, शस्त्र आदि का निर्माण किया।
भगवान विश्वकर्मा के अदभुत निर्माण
मान्यता है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था। इस व्रज से असुरों का संहार हो गया था। भगवान विश्वकर्मा ने श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर नगर और रावण की लंका का भी निर्माण किया था। मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण भी इनके ही द्वारा किया गया था। इसके साथ ही महादेव का त्रिशूल, श्रीहरी का सुदर्शन चक्र, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल और पुष्पक विमान का भी निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था।
ऐसे करें विश्वकर्मा पूजा
सूर्योदय के पूर्व उठ कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करें। अब स्नान करें। पूजास्थल पर आसन ग्रहण करें। भगवान विष्णु के साथ भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दोनों देवताओं को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, मेंहदी, हल्दी, वस्त्र, फूल आदि समर्पित करें। आटे की रंगोली बनाकर उसके ऊपर सात प्रकार के अनाज रखें। इसके ऊपर जल भरकर एक कलश की स्थापना करें। एक बर्तन में चावल रखकर समर्पित करें और भगवान वरुण देव का ध्यान करें। भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा को ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाएं। दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारें।