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भीष्‍म द्वादशी के व्रत से होती है उत्‍तम संतान की प्राप्ति



पितामह भीष्म महाभारत के एक प्रमुख पात्र थे। भीष्म का बचपन में नाम देवव्रत था और वो राजा शांतनु की रानी गंगा के सुपुत्र थे। देवव्रत के जन्म के साथ ही उनकी माता उनको छोड़कर चली गई थी। इस कारण महाराज शांतनु हमेशा दुखी रहते थे। तभी महाराज शांतनु एक मत्स्य गंधा नाम की कन्या को दिल दे बैठे। महाराज शांतनु ने मत्स्य गंधा के पिता के सामने उससे विवाह का प्रस्ताव रखा। तब मत्स्य गंधा के पिता ने कहा कि विवाह इसी शर्त पर होगा कि मत्स्य गंधा की संतान हस्तिनापुर राज्य के सिंहासन पर बैठेगी। शांतनु ने ऐसा वचन देने से इंकार कर दिया, लेकिन मत्स्य गंधा उनके दिल में बसी हुई थी इसलिए वो उसको लेकर परेशान रहने लगे। देवव्रत को जब पिता की इस चिंता का पता चला तो उन्होंने अपने पिता के सामने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले लिया। पुत्र के इस तरह से प्रतिज्ञा लेने पर पिता शांतनु ने उनको इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया। देवव्रत आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।

भीष्म द्वादशी
भीष्म द्वादशी माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आती है। इस साल यह तिथि 6 फरवरी गुरुवार को है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और यदि संतान है तो उसकी प्रगति होती है। इसके साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर सुख-समृद्धि मिलती है। भीष्म द्वादशी को गोविंद द्वादशी भी कहते हैं।

भीष्म द्वादशी की पूजा
भीष्म द्वादशी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठ जाए। नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और पूजा स्थल पर आसन ग्रहण करें। एक पाट पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। मूर्ति हो तो उसको स्नान करवाने के बाद कुमकुम, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, फल, पंचामृत, पंचमेवा, मिष्ठान्न, मौली, केले के पत्ते, तिल, सुपारी, पान, दूर्वा आदि से पूजा करें। इसके साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा का विधान है। पूजन के बाद भीष्म द्वादशी कथा का वाचन करें। ब्रह्मणभोज का आयोजन कर स्वयं भोजन ग्रहण करें। इस दिन दान करने का भी बड़ा महत्व है।

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