top header advertisement
Home - धर्म << जया एकादशी के व्रत से होती पापों से मुक्ति, मिलता है मोक्ष

जया एकादशी के व्रत से होती पापों से मुक्ति, मिलता है मोक्ष



सनातन संस्कृतियों के धर्मशास्त्रों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि का व्रत कर विधि-विधान से पूजा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। इसलिए सभी व्रतों में एकादशी तिथि का महत्व काफी है। महीने में दो और साल में 24 एकादशी तिथि आती है। ऐसी ही एक पुण्यदायी एकादशी तिथि जया एकादशी है। इस साल जया एकादशी 5 फरवरी बुधवार को है।

जया एकादशी की कथा
एक बार धर्मराज युधुष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से माघ शुक्ल एकादशी के संबंध में पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि , हे राजन ! इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इसका व्रत करने से मानव ब्रह्म हत्या जैसे पापों तक से मुक्त हो जाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। इस एकादशी के प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्ति मिलती है। श्रीकृष्ण ने कहा कि पद्मपुराण में वर्णित इस व्रत की महिमा मैं तुमको सुनाता हूं।

एक बार स्वर्गाधिपति इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और साथ में गंधर्व गान कर रहे थे। इन गंधर्वों में प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी पुत्री पुष्पवती, चित्रसेन, उसकी पत्नी मालिनी, मालिनी पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे। इसी दौरान पुष्पवती माल्यवान को चाहने लगी और कामबाण चलाकर उसको अपने प्रेमपाश मे बांध लिया। माल्यवान, पुष्पवती के द्वारा मोहित हो जाने से वह भ्रमित हो गया और उसका गायन बिगड़ गया।

इंद्र ने दिया श्राप
तभी इंद्र उन दोनों के प्रेम को समझ गए, लेकिन उन्होंने इन दोनों के प्रेम को अपना अपमान समझा और दोनों को श्राप दे दिया और कहा कि तुमने मेरी आज्ञा को नहीं माना है इसलिए तुम दोनों मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो। इंद्र के श्राप से दुखी होकर दोनों हिमालय पर्वत पर आ गए। यहां पर दोनों को सिवाय तकलिफों के कुछ नहीं मिल रहा था। हिमालय में उनको भयंकर ठंड लग रही थी। उन्होंने सोचा की किसी जन्म के पाप के फल की वजह से हमको पिशाच योनि मिली है, इसलिए अब हमको पाप नहीं करना चाहिए।

जया एकादशी के व्रत से मिली श्राप से मुक्ति
माघ मास में जब शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई तो दोनों ने फल-फूल खाकर दिन बिताया और कोई पापकर्म नहीं किया। शाम के समय दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए और सूर्यास्त के बाद खतरनाक ठंड की वजह से रात को नींद भी नहीं आई। दिन में अनजाने में जया एकादशी का उपवास और रात्रि जागरण से उनके पापों का नाश हो गया और दोनों पिशाच योनि से मुक्त हो गए और दोनों गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित होकर स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए।

दोनों ने स्वर्गलोक में जाकर देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र दोनों को स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब उन्होंने कहा कि लक्ष्मीनारायण की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमको पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। यह सुनकर इंद्र ने कहा कि विष्णुजी की कृपा और एकादशी का व्रत करने से दोनों हमारे लिए भी वंदनीय हो गए हो। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि जया एकादशी के व्रत से खराब योनि से छूटकारा मिल जाता है और हजारों साल तक स्वर्ग में निवास मिलता है।

Leave a reply