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रोहिणी व्रत : व्रत के प्रभाव से होती है उत्‍तम सुखों की प्राप्ति



जैन धर्म को मानने वाले कठोर व्रत का पालन कर स्वयं को प्रभु को समर्पित करते हैं। त्याग. तपस्या और सात्विक जीवनशैली का पालन करना ही उनके जीवन का उद्देश रहता है। इनके व्रत बड़े ही सादगीभरे और कठोर होते हैं। ऐसा ही एक व्रत रोहिणी है, जिसको जैन संप्रदाय के लोग सुख-समृद्धि के लिए करते हैं। रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र पर आधारित है।

रोहिणी व्रत की कथा
प्राचीनकाल में चंपापुरी नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राज्य करते थे, राजा-रानी के सात पुत्र थे और एक पुत्री थी जिसका नाम रोहिणी था। एक बार राजा ने एक ज्योतिषी से पूछा, कि मेरी पुत्री का विवाह किससे होगा? तो ज्योतिष ने बताया कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ उसका विवाह संपन्न होगा। ज्योतिष की बात सुनकर राजा ने स्‍वयंवर का आयोजन किया, स्वयंवर में रोहिणी ने राजकुमार अशोक का चयन किया और इस तरह से दोनों का धूमधाम से विवाह संपन्‍न हो गया।

एक बार हस्तिनापुर नगर में श्री चारण मुनि का आगमन हुआ। राजा अपने परिवार के साथ उनके दर्शन करने के लिए गए और प्रणाम करके उनके प्रवचन सुने और उसके बाद पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त स्वभाव की क्‍यों है? तब मुनि ने कहा, कि इसी नगर में वस्‍तुपाल नाम के राजा का राज था और उस राजा का धनमित्र नाम का एक मित्र था। धनमित्र की एक दुर्गंधा नाम की लड़की थी जिसको लेकर उसके पिता को हमेशा चिंता लगी रहती थी, कि इस कन्‍या से शादी कौन करेगा। धनमित्र ने बहुत सारी धन-संपत्ति देकर उसका विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से कर दिया। इसके बावजूद ये विवाह ज्यादा समय तक चल नहीं पाया और कन्या की दुर्गंध से परेशान होकर उसका पति एक महीने बाद ही उसे छोड़कर कहीं चला गया।

इसी समय अमृतसेन नाम के ऋषि घूमते हुए नगर में आये, तो धनमित्र अपनी पुत्री को साथ लेकर उन्हें प्रणाम करने गया और अपनी बेटी के दुख की वजह को संत को बताया और उसको दूर करने का उपाय उनसे पूछा। तब ऋषि अमृतसेन ने राजा को बताया कि उसकी बेटी पूर्व जन्म में गिरनार पर्वत के नजदीक एक नगर में राजा भूपाल की सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा ने जंगल जाते समय रास्ते में एक मुनि को देखा तो रानी से उनके भोजन की व्यवस्था करने का कहकर आगे प्रस्थान किया।

अपने आराम में खलल होने की वजह से रानी को काफी गुस्सा आया और संत को भोजन में कड़वी तुम्‍बी को परोस दिया। मुनि को इस भोजन से काफी शारीरिक तकलीफ हुई और इस वजह से उन्‍होंने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने रानी को छोड़ दिया। ऋषि हत्या का पाप लगने के कारण रानी के शरीर में कोढ़ हो गया और बड़ी तकलीफ को भोगते हुए मरने के बाद रानी को नर्क की प्राप्ति हुर्इ और उसके बाद दुर्गंध युक्त कन्या के रूप में धनमित्र के घर पैदा हुर्इ।

तब धनमित्र ने पूछा कि किस व्रत और धार्मिक अनुष्ठान को करने से मेरी लड़की को इस पाप से मुक्ति मिल सकती है। तब ऋषि ने बताया कि सम्‍यग्दर्शन सहित रोहिणी का पालन करने से मुक्ति मिलेगी, यानी हर महीने में रोहिणी नक्षत्र पर आहार का त्‍याग कर श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित सोलह प्रहर वहीं पर बिताएं। यानि सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय व्यतीत करें औ रक्षमता के अनुसार दान धर्म करें। इस प्रकार इस व्रत को पांच साल तक करने से इस तकलीफ से मुक्ति पाई जा सकती है।

मुनि की सलाह मानकर दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया और अंत में निधन के बाद प्रथम स्‍वर्ग में देवी बनी। इसके बाद अगले जन्म में वह राजा अशोक की रानी बनी। तब अशोक ने अपने संबंध में मुनिवर से पूछा, तो मुनि ने कहा कि पूर्व जन्म में वह भील था और उसने एक मुनि पर घोर अत्याचार किया था। इसलिए मरने के बाद उसको नरक मिला और उसके बाद अनेक कुयोनियों में घूमता हुआ एक वणिक के घर अत्‍यंत घृणित और कुरुप शरीर वाले पुत्र के रूप में जन्म लिया।

इसके बाद एक साधु के उपदेश पर उसने रोहिण व्रत किया जिसके कारण से वह स्वर्ग प्राप्त करके राजा बन कर हस्तिनापुर में जन्मा। तब से मान्यता बनी जैसे राजा अशोक और रानी रोहिणी ने रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख भोगकर मोक्ष प्राप्‍त किया उसी प्रकार जो भी श्रद्धासहित यह व्रत करेगा वे सभी उत्‍तम सुख को प्राप्त करेंगे।

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