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महानंदा नवमी के व्रत से मिलती है मॉं लक्ष्‍मी की कृपा


महानंदा नवमी का पर्व गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यदि किसी कारण जीवन कष्टों से घिर गया हो, धन समृद्धि का बड़ा नुकसान हो गया हो और जिंदगी की दुश्वारियां काफी बढ़ गई हो, तो ऐसी विषम परिस्थियों में महानंदा नवमी का व्रत करने से जीवन की सभी तकलिफों को अंत हो जाता है और देवी लक्ष्मी की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

महानंदा नवमी का पूजा विधान
महानंदा नवमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त या उससे थोड़ी देर पहले उठ जाएं। ब्रह्म मुहूर्त में घर की साफ-सफाई कर सारे कचरे को इकट्ठा कर घर से बाहर फेक दें। घर के कचरे को बाहर करने की प्रक्रिया को अलक्ष्मी का विसर्जन कहा जाता है। अब नित्यकर्म से निवृत्त होकर, स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर आसन ग्रहण कर देवी लक्ष्मी का आवाहन करें। देवी महालक्ष्मी को कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, अक्षत, लाल वस्त्र, ऋतुफल, पंचमेवा, मिष्ठान्न और लाल फूल समर्पित करें।

पूजास्थल पर एक अखंड दीपक जलाए और संभव हो तो रात्रि जागरण करें। देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए 'ओम महालक्ष्म्यै नम: ' का जाप करें। रात्रि पूजा और जागरण के पश्चात दूसरे दिन व्रत का पारण करें। नवमी तिथि को कन्याभोज का भी प्रावधान है। इसलिए छोटी कन्याओं को भोजन करवाकर उन्हे दक्षिणा देकर उनके पैर छूना चाहिए। महानंदा नवमी को गरीब और असहाय लोगों की सेवा करने और उनको दान करने से भी अक्षय पुण्य मिलने के साथ विष्णुलोक की प्राप्ति भी होती है।

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