इस तरह हुई थी सरस्वती पूजन की शुरूआत
ज्ञान की देवी सरस्वती को विद्या प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है। मान्यता है कि उनकी कृपा से जड़बुद्धि भी विद्वान हो जाते हैं और दुनियाभर में उनकी ख्याति ज्ञानी और विद्वान पुरूष के रूप में हो जाती है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि देवी सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। इनको वाणी की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। देवी सरस्वती को शतरूपा, वांग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी आदि भी कहा जाता है। इनको श्वेतपद्मासना, श्वेत वस्त्रधारिणी, शुक्लवर्ण भी कहा गया है।
सरस्वती देवी के संबंध में शास्त्रोक्त मान्यताएं
मान्यता है कि एक बार ब्रह्माजी अपनी पुत्री सरस्वती पर आसक्त हो गए थे। ब्रह्माजी देवी सरस्वती से गमन के लिए तत्पर हुए। तभी सभी प्रजापतियों ने अपने पिता ब्रह्मा को समझाया और साथ ही कुकर्म के दुष्परिणाम के बारे में उनको सचेत किया। ब्रहमाजी को जब इसका ज्ञान हुआ तो उन्होंने ग्लानिवश शरीर का त्याग कर दिया इससे समस्त दिशाओं में अंधकार व्याप्त हो गया। उस वक्त पुरूरवा ने परिहास करती हुई सरस्वती को देखा। ब्रह्मा को इस बात का पता नहीं था। उन्होंने उर्वशी के द्वारा सरस्वती को अपने पास बुलावाया और दोनों मिलते रहे। इससे सरस्वती से सरस्वान नाम के पुत्र का जन्म हुआ। बाद में जब ब्रह्माजी को सरस्वती के परिहास का पता चला तो उन्होंने सरस्वती देवी को महानदी होने का शाप दे दिया। शाप से भयभीत होकर सरस्वती गंगा की शरण मे चली गई। तब गंगा के कहने पर ब्रह्मा ने सरस्वती को शापमुक्त कर दिया। इस शाप की वजह से मृत्युलोक में कहीं दृश्य और कहीं अदृश्य रूप में रहने लगी।
सरस्वती पूजन की कथा
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले सरस्वती पूजा का प्रारंभ किया था। शास्त्रोक्त कथा के अनुसार एक बार देवी सरस्वती ने श्री कृष्ण को पति बनाना चाहा। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि भगवान लक्ष्मीनारायण मेरे ही समान हैं। वे नारी के हृदय की भावना से परिचित हैं इसलिए आप उनके पास वैकुंठ में जाओ। हे देवी! मैं सर्वगुण संपन्न होते हुए भी राधा के बिना कुछ नहीं हूँ। राधा के साथ आपको रखना मेरे लिए संभव नहीं। जबकि श्रीहरी लक्ष्मी के साथ तुम्हें भी रख लेंगे। आप और लक्ष्मी दोनों सुंदर और ईर्ष्या के भाव से मुक्त हो। माघ मास को शुक्ल पक्ष की पंचमी पर आपका पूजन अनंत काल तक होता रहेगा और वह विद्यारम्भ का दिवस माना जायेगा। वाल्मीकि, बृहस्पति, भृगु इत्यादि को क्रमश: नारायण, मरीचि और ब्रह्माजी ने सरस्वती-पूजन का बीजमन्त्र दिया था।