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पुत्रदा एकादशी के व्रत से होती है पुत्र रत्‍न की प्राप्ति



सनातन संस्कृति में कुछ तिथियों पर व्रत करने का बड़ा महत्व है । इन तिथियों में एकादशी तिथि भी एक है। हर मास की एकादशी तिथि को व्रत करने का अलग अलग महत्व होता है और उसका फल भी मानव को उसके अनुसार प्राप्त होता है। ऐसी एक तिथि पुत्रदा एकादशी है, जिसका व्रत और विधि-विधान से पूजा करने पर पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

पुत्रदा एकादशी की कथा
शास्त्रोक्त कथा के अनुसार भद्रावती नगर में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। राजा सुकेतुमान को कोई पुत्र नहीं था। राजा की रानी का नाम शैव्या था। वह पुत्र नहीं होने की वजह से हमेशा चिंतित रहती थी। राजा के पितृ भी बड़े दुखी होकर पिंड ग्रहण करते थे और यह सोचते थे कि राजा के बाद हमको कौन पिंड देगा? राजा को धन-दौलत से सुख नहीं मिलता था वह भी यही सोचता था कि मुझे मृत्यु के बाद पिंड कौन देगा।

राजा हमेशा पुत्र को लेकर चिंता करता रहता था और एक दिन उसने हताश होकर शरीर छोड़ देने का निश्चय कर लिया, लेकिन आत्महत्या को महापाप मानकर उसने ऐसा कदम नहीं उठाया। एक दिन यही बात सोचते हुए वन गमन के लिए निकल गया। वन का वातावरण बेहद खुशनुमा था और वहां पर सभी पक्षी और जानवर अपने बच्चों के साथ वन में विचरण कर रहे थे। वन में जंगली जानवरों के चीखने की आवाज भी आ रही थी। राजा ने सोचा कि मैने यज्ञ किए ब्राह्मण भोज का आयोजन किया, लेकिन मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई।

उसी दौरान राजा को प्यास लगी और वह पानी की तलाश करते हुए सरोवर के किनारे पहुंच गया। सरोवर में कमल खिले हुए थे और सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विचरण कर रहे थे। सरोवर के चारों ओर संतों के आश्रम बने हुए थे। राजा ने संतो को प्रणाम किया और वहीं पर बैठ गया। वहां पर उपस्थित संतों ने राजा से कहा कि राजन हम आपसे प्रसन्न हैं इसलिए वरदान मांगे। राजा ने कहा कि आप लोग कौन हैं और यहां पर किसलिए आए हैं। इस पर संतों ने कहा कि राजन आज पुत्रदा एकादशी है इसलिए हम लोग सरोवर में स्नान करने आए हैं।

यह सुनकर राजा ने कहा कि हे संतों यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे संतान प्राप्ति का वरदान दिजिए। राजा की बात सुनकर संत बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी है इसलिए आप इस एकादशाी का व्रत करें आपके यहां संतान जरूर होगी। मुनि के कथनानुसार राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी तिथि को उसका पारण किया। उसके बाद मुनिजनों को प्रणाम कर महल में वापस आ गया। नौ महीने के बाद राजा के यहां एक बालक ने जन्म लिया, जो आगे चलकर काफी होनहार और यशस्वी हुआ।

 

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