पीपल की पूजा करने से इन ग्रहों की पीड़ा से मिलती है शांति
धर्मशास्त्रों में प्रकृति पूजा का विधान बताया गया है। नदियों , पहाड़ों और सरोवरों के साथ वृक्षों की पूजा का वर्णन किया गया है। शास्त्रों में पीपल, बरगद, आंवला, बिलपत्र, तुलसी आदि पेड़-पौधों को देवतुल्य मानते हुए इनकी पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है। इसलिए इस वृक्ष को देव वृक्ष का दर्जा दिया गया है।पद्म पुराण के अनुसार पीपल के वृक्ष को नमन कर उसकी परिक्रमा करने से मानव की आयु लंबी होती है और जो व्यक्ति इसके वृक्ष पर जल समर्पित करता है उसके सभी पापों का अंत होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पीपल में देवताओं का वास होता है इसलिए इसकी छाया तले धार्मिक संस्कार करने का भी महत्व है। कुछ क्रियाकर्म पीपल वृक्ष के नीचे करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शनिदेव का पीपल से संबंध
शास्त्रों में शनिदेव को न्याय का देवता कहा गया है। शनि देव मानव को उसके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। शनिदेव की पीड़ा को शांत करने के लिए पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान बताया गया है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए पीपल वृक्ष को रोजाना जल चढ़ाने की बात कही गई है। पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्यास्त के समय सरसो या तिल के तेल का दीपक लगाने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति ठीक न होने, नीच का या शत्रु राशि में होने, शनि की ढैया या साढ़ेसाती होने पर पीपल की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण के अनुसार पीपल के वृक्ष पर शनि की छाया रहती है। शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ में दूध और जल चढ़ाएं, इसके बाद सात परिक्रमा करें इस उपाय से शनि के साथ राहु, केतु और पितृ दोष की शांति होती है।
बृहस्पति का पीपल से संबंध
ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है। बृहस्पति ग्रह के कुंडली में बेहतर होने से मानव को खुशहाल जीवन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में पीपल का संबंध बृहस्पति से बताया गया है। कुंडली में बृहस्पति ग्रह के कमजोर स्थिति में होने से व्यक्ति को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पीपल की जड़ में जल चढ़ाने से बृहस्पति ग्रह की पीड़ा का नाश होता है और भक्त को बृहस्पति ग्रह की कृपा प्राप्त होती है।