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त्रिदेव के बाल अवतार है भगवान दत्‍तात्रेय



शास्त्रोक्त मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की आराधना से ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों की पूजा हो जाती है। भगवान दत्तात्रेय त्रिदेव के शिशु स्वरूप में धरती पर अवतरित हुए थे। जब त्रिदेव देवी अनुसूईया की परीक्षा लेने आए तो उनको सती अनुसूईया ने अपने तप से शिशु बना दिया था। इस तरह धरती पर भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था।

भगवान दत्तात्रेय के थे चौबीस गुरु
भगवान दत्तात्रेय के चंद्र देव और ऋषि दुर्वासा भाई हैं। चंद्रमा को ब्रह्मा, ऋषि दुर्वासा को शिव और भगवान दत्तात्रेय को विष्णु का स्वरूप माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि वैसे आत्मा ही मेरा गुरु है और मैने चौबीस व्यक्तियों को गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है। ये चौबीस गुरु हैं पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुमारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी, और भृंगी कीट।

भगवान दत्तात्रेय के अवतार
श्रीपाद वल्लभ
नृसिंह सरस्वती
स्वामी समर्थ
मणिक प्रभु

भगवान दत्तात्रेय के शिष्य
भगवान दत्तात्रेय के तीन प्रमुख शिष्य थे और तीनों ही राजा थे। इनमें से दो योद्धा जाति के थे और एक असुर जाति से संबंध रखते थे। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। मान्यता है कि दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया था। यह भी कहा जाता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएँ दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग की शिक्षा देकर उनको कुलश्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय भी दत्तात्रेय को दिया जाता है। यह भी मान्यता है कि सांकृति मुनि को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या और नागार्जुन को रसायन विद्या का ज्ञान भगवान दत्तात्रेय से प्राप्त हुआ था। गुरु गोरखनाथ को भी कई विद्याओं का ज्ञान भगवान दत्तात्रेय से प्राप्त हुआ था।

श्रीदत्त भगवान की पादुका
मान्यता है कि दत्तात्रेय रोजाना काशी में गंगा स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका उपासकों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा दत्त भगवान का मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है।

भगवान दत्तात्रेय का मंत्र

आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।

जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है।

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