अनंग त्रयोदशी का ये हैं महत्व, शिव से मिला था रति को ये वरदान
अनंग त्रयोदशी का व्रत मार्गशीर्ष मास के अलावा चैत्र मास में भी मनाया जाता है। इस दिन देवादिदेव महादेव और देवी पार्वती के साथ कामदेव और रति की पूजा का प्रावधान है। इस व्रत में ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा देने के बाद शाम के समय केवल एक समय भोजन करने का प्रावधान है।
अनंग त्रयोदशी की कथा
पौराणिक काल में तारकासुर नाम का एक दैत्य रहता है। तारकासुर को असीम शक्तियां प्राप्त थी। वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर देवताओं से लेकर जनसाधारण तक को कष्ट देता था। एक समय तारकासुर के अत्याचार इतने बढ़ गए की चारों और हाहाकार मच गया। उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवताओं के राजा इंद्र को स्वर्ग से बाहर करते हुए स्वर्ग के सिहासन पर कब्जा जमा लिया।
देवताओं ने की तारकासुर से छुटकारे की प्रार्थना
तारकासुर के अत्याचार के कारण स्वर्ग से भागकर सभी देवता ब्रह्माजी की शरण में पहुंचे और उनसे इस भयानक समस्या का समाधान बताने की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर ब्रह्मजी ने काफी विचार किया और कहा कि तारकासूर का वध केवल शिवपुत्र के हाथों से ही संभव है। इसलिए हम सभी को कैलाश चलकर महादेव से प्रार्थना करना चाहिए। ब्रह्माजी की बात सुनकर देवता और ज्यादा चिंतित हो गए, क्योंकि भोलेनाथ उस समय देवी सती के वियोग में ध्यान मग्न थे और ऐसी परिस्थिति में महादेव का ध्यान भग्न कौन करे। यह बात देवताओं को असंभव लग रही थी।
कामदेव को शिव ने किया था भस्म
ऐसे समय में देवताओं की व्यथा देखकर कामदेव ने उनको आश्वासन दिया कि भोलेनाथ का ध्यान भग्न करने में वह उनकी सहायता करेंगे। कामदेव उसी समय अपनी पत्नी रति देवी के साथ मिलकर भगवान शिव का ध्यान भंग करने में लग गए। कामदेव ने शिवजी का ध्यान भग्न कर दिया। जब महादेव को उनके ध्यान भग्न होने का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। शिव का तीसरा नेत्र खुलते ही कामदेव वहीं पर भस्म हो गए। कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी देवी रति विलाप करने लगी। देवताओं ने कामदेव के भस्म होने पर शिवजी से सारा वृत्तांत कह दिया।
शिवजी ने देवताओं की बात को सुनकर देवी रति से कहा कि हे देवी रति! तुम्हारा कामदेव अभी भी जीवित अवस्था में है परंतु वह अनंग है, अर्थात बगैर शरीर के है। तुमको अपने पति को सशरीर प्राप्त करने के लिए द्वापर युग तक इंतजार करना होगा। उस समय जब भगवान श्रीहरी धरती पर श्री कृष्ण रूप में अवतार लेंगे तब उनके पुत्र प्रद्युम्न के रूप में तुम्हें तुम्हारे पति सशरीर प्राप्त हो जाएंगे।