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मोक्षदा एकादशी के व्रत से होता है जन्‍म-जन्‍मांतर के पापों को नाश


वैदिक संस्कृति में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस तिथि को विधि-विधान से व्रत करके पूजा करने से जन्म-जन्मान्तर के पापों का नाश होता है और मानव के पुण्यफल में वृद्धि होती है। इसलिए एकादशी तिथि का व्रत करने से विशेष कृपा मिलने की बात कही गई है।

मोक्षदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त

मोक्षदा एकादशी तिथि - 8 दिसंबर 2019, रविवार

एकादशी तिथ‍ि का प्रारंभ - 7 दिसंबर 2019 को सुबह 6 बजकर 34 मिनट से

एकादशी तिथ‍ि का समापन - 8 नवंबर 2019 को सुबह 8 बजकर 29 मिनट पर

पारण यानी व्रत खोलने का समय - 9 दिसंबर 2019 को सुबह 7 बजकर 6 मिनट से सुबह 9 बजकर 9 मिनट तक

मोक्षदा एकादशी का महत्‍व
सनातन संस्कृति के शास्त्रों में मोक्षदा एकादशी को मोक्ष प्रदान करने वाली बताया गया है। इसलिए इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। विष्‍णु पुराण में मोक्षदा एकादशी का व्रत वर्ष की 23 एकादश‍ियों के उपवास के बराबर बताया गया है। मोक्षदा एकादशी का पुण्‍य पितरों को अर्पित करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ नारकीय यातनाओं से मुक्‍त होकर स्‍वर्गलोक को प्रस्थान करते हैं। मान्‍यता है कि जो भक्त मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है उसके समस्त पाप नष्‍ट हो जाते हैं और उसको जन्म-मरण के बंधन से हमेशा के लिए मु्क्ति म‍िल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजा विध‍ि
मोक्षदा एकादशी का दिन पुण्यफल और मोक्ष को देने वाला होता है इसलिए इस तिथि को सूर्योदय के पूर्व उठ जाएं। स्नान आदि से निवृत्त होकर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और श्रीकृष्‍ण के नाम का जाप करते हुए घर को गंगाजल या दूसरे किसी पवित्र जल से शुद्ध करें। इसके बाद एक पाट पर श्रीगणेश, भगवान श्रीकृष्‍ण और महर्ष‍ि वेदव्‍यास की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें। श्रीमदभगवद् गीता की प्रति भी लाल वस्त्र बिछाकर पाट पर रखें। श्रीगणेश की कुमकुम, अक्षत, मेंहदी, हल्दी, गुलाल, अबीर, चंदन से पूजा करें। उनको जनेऊ, वस्त्र, श्रीफल, ऋतुफल, मिष्ठान्न, लड्डू, मोदक आदि समर्पित करें।

भगवान विष्णु को कुमकुम, अबीर, गुलाल आदि के साथ तुलसीदल और मंजरी समर्पित करें। श्रीमदभगवद् गीता की पुस्‍तक का पूजन करें। गाय के घी का दीपक जलाएं। धूपबत्ती लगाएं। विधि-विधान से पूजा करने के बाद देवी-देवताओं की आरती उतारे। कथा का वाचन करें या कथा सुने। प्रसाद का वितरण करें। अब यदि व्रत किया है तो दूसरे दिन व्रत को खोलें।

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