विनायक चर्तुथी : श्रीगणेश की आराधना से पूरी होगी सभी मनोकामनाऐं
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और गणपति प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। भगवान गणेश रिद्धि-सिद्धि के दाता और जीवन का कल्याण करने वाले हैं। चतुर्थी तिथि श्रीगणेश की तिथि है इसलिए इस दिन इनकी आराधना से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
विनायक चतुर्थी पर गणेश पूजा
सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। उसके बाद लाल रंग के वस्त्र धारण करें। उदित होते सूर्य को तांबे के लोटे से जल दें। घर को स्वच्छ कर एक पाट रखें। पाट पर लाल कपड़ा बिछाए और श्रीगणेश को जल में स्नान करवाकर उसके ऊपर उनको विराजमान करें। श्रीगणेश को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, कलेवा, जनेऊ जोड़ा, दुर्वा और लाल फूल समर्पित करें। उनको लड्डू, मोदक, पंचमेवा, पंचामृत, ऋतुफल, नारियल आदि का भोग लगाएं। गुड़-घी की धूप दें और श्रीगणेश के समक्ष तेल और गाय के घी का दीपक लगाएं। धूपबत्ती जलाएं।
इसके बाद गणेशजी की आराधना के लिए गणपति अथर्वशीर्ष, गणपति स्त्रोत, गणपति चालीसा, गणपति विघ्नविनाशक स्त्रोत, गणपति संतान प्राप्ति स्त्रोत आदि का पाठ करें। ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जाप 27 बार करें। चतुर्थी तिथि को रात्रि के समय भी ईसी विधि-विधान से श्रीगणेश की आराधना करें।
यह रखे सावधानियां
श्रीगणेश को अर्पित की जाने वाली दुर्वा की संख्या 5, 11 या 21 होना चाहिए। इसमें कम से कम तीन या पांच पत्तियां होना चाहिए। दुर्वा को माला बनाकर भी चढ़ाया जाता है। श्रीगणेश को पूजा करते समय ओम गं गणपतये नम: का जाप करते हुए 21 दुर्वा समर्पित करें। श्रीगणेश को 21 मोदकों का भोग लगाएं। इनमें से 5 मोदक गणपतिजी को समर्पित कर दें। 5 मोदक ब्राह्मण को दान कर दें। बाकि बचे हुए मोदक को प्रसाद रूप में वितरित कर दें।