कालभैरव अष्टमी : शिव के अंश से हुआ था काल भैरव का जन्म, ऐसे होती है पूजा
सनातन संस्कृति के शास्त्रों में भैरव महाराज को साक्षात शिव का स्वरूप माना गया है। भैरव देव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। मान्यता है कि भैरव महाराज की उपासना से बल, बुद्धि, यश, कीर्ति, धनदौलत और आरोग्य की प्राप्ति होती है। अष्टमी तिथि को भैरव महाराज की आराधना का विशेष महत्व है। किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इस मास में 19 नवंबर मंगलवार को कालभैरव अष्टमी मनाई जाएगी। इस तिथि को कालभैरव के पूजन, उपासना और व्रत रखने से सभी कष्टों का नाश होकर सुख समृद्धि मिलती है।
भैरव महाराज का स्वरूप
भैरव महाराज को महादेव का अंशावतार माना जाता है। रूद्राष्टाध्याय और भैरव तंत्र से इसका उल्लेख किया गया है। भैरव महाराज का श्याम वर्ण के है और वो चार भुजाधारी हैं। भैरवजी के शस्त्र त्रिशूल, खड़ग और खप्पर है। भैरव महाराज गले में नरमुंड धारण किए हुए हैं। इनका वाहन कुत्ता है और श्मशान उनका निवास है। भूत-प्रेत और योगिनियों के स्वामी है। भक्तों पर कृपादृष्टि रखते हैं और दुष्टों का संहार करते हैं।
भगवान काल-भैरव की पूजा विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने पितृों को श्राद्ध और तर्पण दें। इसके बाद कालभैरव की पूजा प्रारंभ करें। पूजा से पहले सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें सारे दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत का पालन करें। रात के समय भगवान कालभैरव को काले तिल, उड़द, सरसों का तेल समर्पित करें और धूप, दीप जलाएं और देव कालभैरव की आरती करें। भगवान कालभैरव की उपासना में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है।
काल भैरव की पूजा का शुभ मुहूर्त
काल भैरव अष्टमी प्रारंभ - 19 नवंबर को शाम 3 बजकर 35 मिनट पर
काल भैरव अष्टमी का समापन - 20 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 41 मिनट पर
भगवान काल भैरव पूजन मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्।
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि ।।
'ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं'।