पढ़ने का इतना जुनून, सेना में नौकरी करते हुए हासिल करी 51 डिग्रियां
जयपुर। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती और ना ही वक्त होता और इसे साबित किया है ऐक सैनिक ने। सेना में 16 साल नौकरी करने के बाद इस सैनिक ने एक या दो नहीं बल्कि 51 डिग्रियां अपने नाम की हैं। पंजाब, कश्मीर, असम जैसे इलाको में कठिन परिस्थितियों में भी सेना की सेवा करने के बावजूद उनमें पढ़ाई का ऐसा जुनून था कि 51 डिग्रियां, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट हासिल कर लिए।
यह उपलब्धि राजस्थान के जाबांज सिपाही रहे डॉ. दशरथ सिंह के नाम दर्ज है। हाल ही में दशरथ सिंह नाम इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 'मोस्ट एजुकेशनली क्वालिफाइड पर्सन ऑफ द वर्ल्ड' यानी विश्व के सबसे ज्यादा शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्ति के रूप में दर्ज किया है। इस रिकॉर्ड बुक ने उनकी 36 डिग्रियों को उनके नाम के साथ शामिल किया है। गिनीज बुक के लिए भी उन्होंने आवेदन किया हुआ है और उनके गिनीज बुक की ओर से उनके दावे की जांच की प्रक्रिया चल रही है।
डॉ. दशरथ सिंह अब तक मुख्य रूप से भूमि सुधार विषय पर पीएचडी, 15 विषयों में मास्टर्स, आठ में स्नातक, विधि से सम्बन्धित 11 और सेना से सम्बन्धित आठ विषयों में डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट हासिल कर चुके है। इसके अलावा उनका चयन राजस्थान में द्वितीय श्रेणी शिक्षक और राजस्थान प्रशासनिक सेवा में भी हो चुका है, लेकिन वे इन सरकारी सेवाओं को छोड़ कर इन दिनों सेना के दक्षिण पश्चिम कमान में विधि परामर्शी का काम कर रहे हैं और सेना के साथ ही सैनिकों के कानूनी विवाद भी सुलझा रहे है।
सेना में राजस्थान से सबसे ज्यादा सैनिक भेजने वाले झुंझुनू जिले की नवलगढ तहसील के खिरोडसर गांव के रहने वाले दशरथ सिंह ने 16 वर्ष तक लगातार सेना में फील्ड ड्यूटी दी है। सेना की 9 राजपूताना रेजिमेंट के सैनिक रहे दशरथ सिंह को पहली पोस्टिंग पंजाब में मिली थी। इसके बाद उल्फा आंदोलन के दौरान असम में रहे। इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय राइफल्स के पहले बैच में शामिल कर कश्मीर भेज दिया गया। यहां डोडा जैसे आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्र में उन्होने साढ़े तीन साल देश की सेवा की।
लगातार फील्ड ड्यूटी के बाद उन्हे कुछ समय के लिए लखनऊ भेजा गया, लेकिन इसी दौरान संसद पर हमले की घटना हुई तो इन्हें वापस कश्मीर भेज दिया गया और बाद में ये करगिल युद्ध में शामिल रहे। करीब 16 साल तक सेना की सेवा करने के बाद ये सेना से रिटायर हो गए। दशरथ सिंह ने बताया कि पढ़ने का शौक बचपन से ही था, लेकिन पैसा नहीं था। दादा और पिता भी सेना में थे, लेकिन परिवार काफी बड़ा था। दसवीं तो कर ली, लेकिन कॉलेज में प्रथम वर्ष के बाद ही सेना में चला गया। सेना में रहते हुए भी यह कसक रही कि पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। बस इसी कमी को पूरा करने के लिए लगातार पढ़ाई का सिलसिला शुरू किया।
पहली डिग्री बैचलर ऑफ आर्ट्स की ली और इसके बाद से लगातार पढ़ाई जारी है। आखिरी डिग्री समाजशास्त्र में एमए की ली है और अभी गांधी पीस स्टडीज में डिप्लोमा कर रहा हूं। दशरथ सिंह ने एलएलबी, एलएलएम, बीजेएमसी और बीएड की डिग्री नियमित छात्र के रूप में ली है, बाकी डिग्री और डिप्लोमा इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा ओपन यूनिवर्सिटी, जैन विश्व भारती लाडनूं और दो-तीन निजी विश्वविद्यालयों से प्राप्त की है। उन्होंने बताया कि सेना की सेवा के दौरान तो एक ही विश्वविद्यालय की परीक्षा देता था, लेकिन अब दो-तीन पाठयक्रम एक साथ चलते है। वे अब तक 500 से ज्यादा परीक्षाएं दे चुके है और लगभग सभी एक बार में 50 से 75 प्रतिशत अंकों के साथ पास की है।
उन्होंने बताया कि सेना में रहते हुए दो महीन की छुटटी हर साल मिलती है। मै यह छुटटी मई जून मे ही लेता था। इसी दौरान सब जगह परीक्षाएं होती है, इसलिए घर आकर पढ़ाई और परीक्षाएं देने का ही काम रहता था। सेना में नौकरी के दौरान कभी होली-दीवाली या अन्य त्यौंहारों के लिए छुटटी नहीं ली। रिटायरमेंट के बाद तो पढाई ही सब कुछ हो गई। सरकारी नौकरी मिली, लेकिन लगा कि समाज और परिवार से दूर रह कर देश की सेवा करने वाले सैनिकों के लिए कुछ करना चाहिए, क्योंकि सैनिक जब रिटायर हो कर घर लौटता है तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडता है और यह ज्यादातर कानूनी पचड़े होते है जो सैनिको को समझ नहीं आते।
इसीलिए कानून की डिग्री हासिल कर वकालत शुरू कर दी। दो वर्ष पहले सेना ने बुला लिया और अब जयपुर में सेना की सप्तशक्ति कमांड में विधि परामर्शी के रूप में सेना, सैनिकों और पूर्व सैनिकों से जुडे मामले देखता हूं। उनका कहना है कि अब तक 250 से ज्यादा सैनिकों के केस लडे है और ज्यादातर में सफलता हासिल हुई है।