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कार्तिक पूर्णिमा : भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध


कार्तिक के समापन पर देशभर में कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। जिसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' या 'त्रिपुरारी पूर्णिमा' के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इसी दिन भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्यावतार लिया था। इसलिए इस दिन मत्स्य अवतार जयंती भी मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' के रूप में भी मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का हिंदुओं, सिखों और जैनों के लिए बहुत महत्व है। जैन तीर्थ पालिताणा में श्री शत्रुन्ज तीर्थ में इस दिन भगवान आदिनाथ की पूजा की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा में, तीर्थस्थलों पर सूर्योदय के समय 'कार्तिक स्नान' किया जाता है।

भगवान विष्णु की फूल, धूप की छड़ और दीपक के साथ पूजा करते हैं। श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास करते हैं, 'सत्यनारायण व्रत' रखते हैं और 'सत्यनारायण कथा' का पाठ करते हैं। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर दीयों का दान करने का बहुत महत्व है।

कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा: कार्तिक पूर्णिमा की कथा के अनुसार दानव त्रिपुरासुर ने देवताओं को हराया और पूरे विश्व पर विजय प्राप्त की थी। वह आततायी हो गया तब देवताओं ने भगवान शिव से इस संकट से छुटकारा दिलाने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार यह वृंदा (तुलसी पौधे का मूर्त रूप) के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ है। कार्तिक महीने के अंतिम पांच दिनों को अधिक पवित्र माना जाता है, इन पांच दिनों में हर दिन दोपहर में केवल एक बार भोजन किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा की परंपरा कार्तिका पूर्णिमा के अनुष्ठानों में नदी में स्नान, भगवान शिव की प्रार्थना और पूरे दिन का उपवास रखा जाता है। पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।

भगवान शिव के मंदिर की यात्रा करते हैं और दीप जलाते हैं। तुलसी के पौधे के सामने भी दीप जलाते हैं जहां राधा और कृष्ण की मूर्तियों को रखा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा सत्यनारायण स्वामी व्रत की कथा सुनने के लिए पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन शिव के लगभग सभी मंदिरों में एकादशीरुद्र अभिषेक किया जाता है। इसमें भगवान शिव को स्नान कराया जाता है और रुद्रा चामकम और रुद्र नमकम का ग्यारह बार जप किया जाता है।

माना जाता है कि कार्तिका पूर्णिमा पर एकदश रुद्र अभिषेक करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। जैनों के लिए भी महत्वपूर्ण कार्तिक पूर्णिमा पर जैन तीर्थयात्री गुजरात में पलिताना जैन मंदिर के पहुंचते हैं। इस दिन पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ अपना पहला धर्मोपदेश देने के लिए पहाड़ियों पर आए थे।

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