देवउठनी ग्यारस के दिन होता है तुलसी-शालिगराम का विवाह
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं, फिर पुनः कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं. इन चार महीनो में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. जब देव (भगवान विष्णु) जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है. देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं. इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है. कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार देवोत्थान एकादशी 08 नवंबर को होगी.
क्या है तुलसी विवाह और इसका महत्व?
ऐसी मान्यताएं हैं कि भगवान विष्णु को तुलसी का वरण करने के कारण शालिग्राम का रूप लेना पड़ा था. इसलिए शालिग्राम के रूप में ही श्री हरि का विवाह भगवान विष्णु के साथ कराया जाता है. भगवान विष्णु को तुलसी सर्वाधिक प्रिय है. मात्र तुलसी दल अर्पित करने से भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है. इसके पीछे प्रकृति के संरक्षण की भावना भी है और वैवाहिक सुख की भी. जो लोग इसको सम्पन्न कराते हैं उनको वैवाहिक सुख प्राप्त होता है.
क्या है देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि?
- गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं.
- चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं
- चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाए जाते हैं, जिसको कि ढक दिया जाता है
- भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई समर्पित किया जाता है
- घी का एक दीपक जलाया जाता है जो कि रात भर जलता रहता है
- भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती है और चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है
- शंख-घंटा-और कीर्तन की ध्वनि की जाती है
- इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है
- इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरू किए जा सकते हैं
- भगवान के चरणों का स्पर्श करके जो मनोकामना कही जाती है, वह पूरी होती है
शीघ्र विवाह के लिए क्या करें उपाय
- लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें
- शालिग्राम को स्नान कराके उनको चन्दन लगाएं
- उनको पीले रंग के आसन पर बिठाएँ
- फिर तुलसी को अपने हाथों से उनको समर्पित करें
- प्रार्थना करें कि आपका विवाह शीघ्र हो जाता है.